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Showing posts from 2008

अभिषेक को कमाल तो देखो...

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अरे च म्बल के बीहड़न में बसे भिंड को मौड़ा है अपओ अभिषेक । कूची चलाउत-चलाउत ग्वालियर आओ और फिर वहां ते वाया इंदौर पहुंच गया जयपुर। मुंबई में आतंकी हमलों के बाद अपए अभिषेक की कूची से ऐसे जानदार-शानदार व्यंग्य निकले कि कछु पूछो मत। बिना विलंब के आपकी खिदमत में पेश है आपके मौड़ा ये कार्टून- और हां जबऊ मौका मिले तबही अपए जा मौड़ा की पीठ थपथपा दिओ, काहे कि कछु दिना पहले मौड़ा काठमांडू में साउथ एशियन कार्टून कांग्रेस में हिस्सा लेके आओ है। चंबल को मौड़ा है, तो नेपाल में नाम ही करके आओ होगो। भईया अपनेराम की जानिब अबही बधाई ले लो, चंबल के दूसरे भईयन को मैसेज तुमन तक पहुंच जागो। तब तक के लाने राम-राम।

सिंधियाजी ने क्यों नहीं डाला वोट

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ग्वालियर के जयविलास परिसर में जीवित सिंधिया राजवंश के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता है और विधानसभा चुनाव में अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलाने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। जब अपनों को टिकट दिला ही दिया, तो उन्हें जिताने के लिए भाई ज्योतिरादित्य ने गांव-देहात की भी जमकर धूल फांकी। चुनाव किसी भी स्तर का हो एक-एक वोट मायने रखता है, इसलिए वोटों के लिए उन्होंने अंचल की हर सभा में अपने परिवार और जनता से रिश्तों की जमकर दुहाई दी। दुर्भाग्य देखिए, पब्लिक को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले सिंधिया जी ने मतदान करना तक उचित नहीं समझा। अर्थात, मतदान वाले दिन न तो वे आए और न ही उनके परिवार का कोई सदस्य। इसका सीधा मतलब यह कि इस क्षेत्र के कांग्रेस उम्मीदवार के तीन सालिड वोट हाथ से निकल गए। मतदान न करने में क्या मजबूरी रही, यह तो वो ही जाने लेकिन कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि सिंधियाजी भी और नेताओं की राह पर चल पड़े हैं? यह अलहदा है कि उनकी बुआ सांसद यशोधराराजे सिंधिया ने शिवपुरी और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और राजनाथ सिंह के सलाहकार प्रभात झा ने भी ग्वालियर में

चरणभाट और कलमभाट

ताल-तलैया की नगरी से ग्वालियर आना हुआ, तो सोचा क्यों न सियासी हलचल की नजर की जाए। जब अपनों (अरे भाई वोई कलमघसीटू क्लर्क) के बीच पहुंचे तो अहसास हुआ कि पूरा निजाम ही बदला हुआ है। जब भी सियासी बयार चलती है, लोगों के चोले बदल जाते हैं। कुछ नेता गिरगिट की उपमा पाते हैं, तो कुछ सियार की। चुनाव के समय नेताओं को चरणभाटों की दरकार रहती है, जो उन्हें चंद पैसे या फिर स्वादिष्ट खाना या कपड़ों की कीमत पर सुलभ हो जाते हैं। चरणभाटों का दस्तूर राजा-महाराजाओं के जमाने का है और एक तरह से सियासतदारों के साथ जनता ने भी इन्हें स्वीकार कर लिया है लेकिन समाज की दशा-दिशा निर्धारित करन वाले कलमभाटों का चलन पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। सियासत में गहरी पैठ रखने वाले कलमभाटों को देश की राजधानी या किसी बड़े नगर में फ्लैट या कार की चाबी मिलने-दिलाने की चर्चाएं कलमकारों के बीच आम रही है। अब यह बीमारी छोटे शहरों तक पहुंचकर कलम को कटघरे में खड़ा कर रही है। इस बार चुनाव में कोई मुद्दा या लहर लोगों के सिर चढ़कर नहीं बोल रही। नेताजी की छवि ही निर्णायक भूमिका में है, इसलिए अपनी छवि को चमकाने के लिए ग्वालियर-चम्ब

हर डाल पर राज ठाकरे बैठा है........

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लाख टके का एक सवाल, आखिर बिहारी ही क्यों मार खाते हैं? क्या इसके लिए राज ठाकरे ही पूरी तरह से जिम्मेदार है? इन सवालों का जवाब पाने के लिए हमें कुछ मुद्दों पर विचार करना होगा। नाम जुदा हो सकते हैं पर राज ठाकरे जैसे फितरती और राष्ट्रतोड़क तत्व देश के हर क्षेत्र या प्रदेश में पाए जाते हैं। राज ठाकरे की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है और वे शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे की विरासत को हथियाने के लिए उत्तर भारतीयों को अपने निशाने पर लिए हुए हैं। अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है और यदि कोई कुत्ता अपनी गली में आए बाहरी लोगों पर भौंकता है, तो क्या गलत करता है। राज ठाकरे भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव को मुंबई में छठपूजा करने की चुनौती देकर और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को सपरिवार गरियाकर शिवसेना का यह पुराना सैनिक पहले भी धृष्टता कर चुका है। और अब रेलवे की परीक्षा देने आए बिहारियों की मारपीट के पीछे उनकी वोट बैंक की गंदी राजनीति और दूषित मानसिकता ही निहित है ।ऐसा करते समय राज ठाकरे और उनके अनुयायी यह भूल जाते हैं कि यदि देश के अन्य हिस्सों में महाराष्ट्र के लोगों को खदेड़

राजमाता पर फिल्म के मायने

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ग्वालियर के सिंधि या राजवंश की आखिरी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। राजपथ से लोकपथ का उनका यह सफर क भी रजिया सुल्तान बनी बॉलीवुड की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी अब परदे पर जीवंत करने जा रही हैं। 'एक थी रानी ऐसी भी' नामक फिल्म में हेमा राजमाता का किरदार निभाएंगी, तो उनके पति जीवाजीराव सिंधिया का किरदार विनोद खन्ना निभाएंगे। यह फिल्म गुलबहार सिंह के निर्देशन में बनने वाली है। इस फिल्म का मुहुर्त पिछले दिनों मुंबई में हो चुका है और जल्द ही इस फिल्म की शुटिंग शुरु हो जाएगी। त्याग, सादगी और सेवा की प्रतिमूर्ति अम्मा महाराज के जीवन पर बनने वाली इस फिल्म को लेकर लोगों की उत्सुकता स्वाभाविक है, क्योंकि ग्वालियर की यह अंतिम महारानी हमेशा ही सुर्खियों में रही। फिर चाहे बात मध्यप्रदेश की राजनीति की हो, या फिर अपने पुत्र और कांग्रेस के कद्दावर नेता माधवराव सिंधिया से उनके संबंधों की। राजमाता की भूमिका मेरा सौभाग्य-हेमा हेमा ने कहा-‘मैं बहुत खुश हूं कि राजमाता के इस किरदार को मैं परदे पर जियूंगी। मेरे लिए यह बहुत सम्मान की बात है। वह भारतीय जनता पार्टी की संस

आलोक जी कर्ज अभी बाकी है..

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खरी-खरी कहने के लिए चम्बल की माटी के लाल आलोक तोमर को अपनेराम की राम-राम। दो बार आलोक जी को जानने-समझने का अवसर मुझे मिला। पहला ग्वालियर के बसंत विहार में रश्मि परिहार के निवास पर दोस्तों की महफिल में और फिर दिल्ली में आपके आवास पर। उनके बारे में औरों से ब हुत कुछ सुना था, वह इन दो मुलाकातों में साफ नहीं हो सका लेकिन इस साक्षात्कार ने काफी हद तक स्पष्ट कर दिया कि आलोक तोमर किस शख्सियत का नाम है। ग्वालियर-चम्बल अंचल ने बहुतेरे प्रतिभाशाली पत्रकार दिए हैं, मगर प्रभाष जोशी जैसे कलम के महारथी की छत्रछाया हर किसी को नहीं मिल पाती। सही मायने में आलोक कुमार सिंह तोमर पतझर को आलोक तोमर बनाने का श्रेय प्रभाष जोशी को जाता है और आपने बेबाकी से इस बात को स्वीकार करके इस महान पत्रकार का मान ही बढ़ाया है। यह चंबल की माटी की ही तासीर है, जिसने जोश-जज्बा और उत्साह के साथ आपको अन्याय के सामने नहीं झुकने का साहस दिया। किसी ने ठीक ही कहा है- जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जीया करते हैं। निःसंदेह अपनी लेखनी के कारण आप युवा पत्रकारों के प्रेरणास्रोत हैं, इसलिए आवश्यक है कि आप भी प्रभाष जो

अनुपम अहसास पारसमणि का

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भोपाल के रवींद्र भवन में ख्यात पर्यावरणविद् और गांधीवादी अनुपम मिश्र के साथ मंच पर मौजूदगी मेरे लिए किसी सुखद स्वप्न से कम नहीं थी। उनके बारे में जो सुना था, पढ़ा था, उन्हें उससे भी कहीं ज्यादा पाया। आचार-विचार और पहनावे में ऐसी सादगी, जो हर किसी को इस शख्सियत के आगे नत-मस्तक होने पर मजबूर कर दे। इस मंच पर श्री मिश्र को मध्यप्रदेश शासन का शहीद चंद्रशेखर आजाद राष्ट्रीय सम्मान और मुझे पत्रकार रतनलाल जोशी पत्रकारिता पुरस्कार प्रदान किया गया। गिरते सामाजिक मूल्य और भ्रष्ट्राचार के इस दौर में अनुपम मिश्र किसी पारस मणि से कम नहीं है, जिसके छूनेभर से पत्थर भी सोना बन जाता है। मंच पर उनकी उपस्थित मात्र ने मध्यप्रदेश सरकार के पत्रकारिता पुरस्कार वितरण समारोह की ही गरिमा नहीं बढ़ाई बल्कि पुरस्कार ग्रहण करने वालों का भी मान बढ़ा दिया। अनुपम मिश्र के बारे में आप और अधिक जान सकें, इसके लिए संजय तिवारी द्वारा उन पर लिखित आलेख यहां प्रस्तुत है- अलंकरण और अहंकार से मुक्त अनुपम मिश्र का परिचय देना हो तो प्रख्यात पर्यावरणविद कहकर समेट दिया जाता है. उनके लिए यह परिचय मुझे हमेशा अधूरा लगता है. फिर हमें

अपनेराम बागियन के बीच

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जिन भईयन ने उत्साह बढ़ाओ उन्हें अपनेराम की सिंगल राम-राम और जिन भईयन ने अब तक सच को सलाम ना देखो, उन्हें डबल राम-राम। कन्फ्यूज्ड न होऊ भईया। अपनेराम ने एक कहानी पढ़ी हती, बाको सार हम आपऊ ऐ बता देत हैं- एक गांव में एक स्वामी जी पहुंचे। जिन लोगन ने आदर-सत्कार करो उन्हें तो स्वामी जी ने गांव से बाहर जावे को आशीर्वाद दओ और जिन लोगन ने उन पर पत्थर फेंके उन्हें गांव में ही रहवो को आशीर्वाद दओ। स्वामी जी के शिष्य ने जाकी वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि अच्छे लोग बाहर जाएंगे, तो अच्छाईयां फैलाएंगे और बुरे लोग बाहर जाएंगे तो बुराईयां फैलाएंगे। अरे जा इमोशनल ड्रामा में हम तो भूल ही गए कि भईयन से हमने कछु बतावे को वादा करो हतो। तो सुनो,जब हम तीनों (अपनेराम, फोटोग्राफर व टैक्सी ड्राइवर) के आंखन पर बंधी कपड़ा की पट्टी हटाई गई, तो हमने खुद को बड़ी-बड़ी दाड़ी-मूंछों वाले बंदूकधारियों के बीच पाया। कोऊ ने मुंह पर कपड़ा लपेटो हतो थो, तो कोऊ सब्जी-भाजी के इंतजाम में लगो थो और घड़ी के कांटे ने बजा दए थे दिन के पूरे बारह। फर्श पर पसरकर बैठा दस्यु सरदार निर्भय व्हिस्की के घूंट गटककर अपने गले को तर कर रहा था।

अपनेराम पहुंचे चम्बल के बीहड़ में

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अपनेराम जब कंचे, गिल्ली-डंडा खेलत हते, तबही से बड़े-बुजुर्गन से सुनत रहे थे कि चम्बल के बीहड़ में बड़े-बड़े डकैत होत हैं। हमारी मम्मी ने तो न सुलाओ, लेकिन गांव जाते तब हमें बताओ जातो कि जल्दी सो जाओ नहीं तो बागी उठा लै जांगे। शोले फिल्म के ठीक उस डायलॉग की तरह कि सोजा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा। खैर, जब होश संभाला तो हमारे मन में बागियन की फोटू कछु ऐसी थी- ललाट पर लंबा सा तिलक, घनी दाढ़ी-मूंछ, कांधे पर बंदूक और बीहड़ों में तेज गति से भागते घो़ड़े। यह फिल्मी छवि थी। बाद में गांव बारेअन ने बता दओ कि चम्बल के बीहड़ में बागियन के पास घोड़ा न पहले रहे, न अबे हैं। पढ़वे-लिखवे को काम शुरू करो, तो हर दूसरे दिना खबर आती कि फलां गांव में बागी आए और रुपैयन के लाने कोऊ उठाकर ले गए, तो कोऊ ये गोली मारकर भगवान के पास भेज दओ। अखबारन में ऐसी खबरें पढ़-पढ़के अपनेराम के मन में आओ कि काहे न बीहड़ में जाकै बागियन ते मिलो जाए। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान समेत पांच राज्यों का मोस्ट वांटेड पांच लाख रुपए के इनामी निर्भय सिंह गुर्जर के नाम का डंका चम्बल में पिछले तीन दशक से बज रहा था। फक्कड़ बाबा के

लो आ गए अपनेराम

चम्बल के सब भईयन को अपनेराम की राम-राम। अपने भईयन से मिलवे को बहुत दिना से मन हतो, मगर का करते नौकरी के फेर में ताल-तलैयन की नगरी में पहुंच गए। अपने आप में इतने उलझ गए कि भईयन के बारे में सोचऊ न पाए। खैर, गुस्ताखी माफ। अब आपको शिकायत का मौका नहीं देंगे। कोशिश करेंगे कि दो-चार दिना छोड़के आपके पास तक अपनी बात जरूर पहुंचा दें। पहले अपनेराम के बारे में। चम्बल की माटी में पले-बढ़े और खेले अपनेराम की कलम बहुत दिना से कुलबुला रही थी कि चुनावी बरसात से पहले अपने भईयन को सुख-दुख बांटो जाए। यह हम नहीं कहते, बल्कि खरे सोने की तरह यह बात जगजाहिर है कि चम्बल वाले जो कहते हैं मुंह पर कहते हैं। पीठ के पीछे वार करना आता नहीं। इसलिए अपनेराम की भी यही ख्वाहिश है कि अपनी और आपकी बात पूरी दमदारी से रखी जाए। कहते हैं ना, एक अंगुली से मुट्ठी भली। हम भी चाहते हैं कि जब भी अपनी और आपकी बात हो, तो एक शायर को मिलने वाली दाद जरूर मिले। अच्छी मिलेगी तो कुछ और अच्छा लिखने का उत्साह मिलेगा। और यदि बुरी मिली तो यह कमियों को सुधारने के लिए प्रेरित करेगी। आपके मन में यह ख्याल जरूर आ रहा होगा कि यह अपनेराम आखिर आ कहां
चम्बल की माटी सच कहने की हिम्मत देती है। हमने दैनिक भास्कर के बैनर पर नकली देसी घी और सिंथेटिक दूध बनाने वालो के खिलाफ अभियान चलाया। इस पर आपकी क्या राय है?