आलोक जी कर्ज अभी बाकी है..

खरी-खरी कहने के लिए चम्बल की माटी के लाल आलोक तोमर को अपनेराम की राम-राम। दो बार आलोक जी को जानने-समझने का अवसर मुझे मिला। पहला ग्वालियर के बसंत विहार में रश्मि परिहार के निवास पर दोस्तों की महफिल में और फिर दिल्ली में आपके आवास पर। उनके बारे में औरों से हुत कुछ सुना था, वह इन दो मुलाकातों में साफ नहीं हो सका लेकिन इस साक्षात्कार ने काफी हद तक स्पष्ट कर दिया कि आलोक तोमर किस शख्सियत का नाम है। ग्वालियर-चम्बल अंचल ने बहुतेरे प्रतिभाशाली पत्रकार दिए हैं, मगर प्रभाष जोशी जैसे कलम के महारथी की छत्रछाया हर किसी को नहीं मिल पाती। सही मायने में आलोक कुमार सिंह तोमर पतझर को आलोक तोमर बनाने का श्रेय प्रभाष जोशी को जाता है और आपने बेबाकी से इस बात को स्वीकार करके इस महान पत्रकार का मान ही बढ़ाया है। यह चंबल की माटी की ही तासीर है, जिसने जोश-जज्बा और उत्साह के साथ आपको अन्याय के सामने नहीं झुकने का साहस दिया। किसी ने ठीक ही कहा है-जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जीया करते हैं। निःसंदेह अपनी लेखनी के कारण आप युवा पत्रकारों के प्रेरणास्रोत हैं, इसलिए आवश्यक है कि आप भी प्रभाष जोशी की भांति ग्वालियर-चम्बल अंचल के प्रतिभाशाली पत्रकारों को आगे बढ़ाने में सेतु का काम करेंगे। शायद चम्बल की माटी का यह कर्ज आप पर अभी बाकी है।
चम्बल की शान वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर का विस्तृत इंटरव्यू पत्रकार यशवंत सिंह ने लिया है। यह इंटरव्यू आप विस्तार से यहां पढ़ सकते हैं-




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