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Showing posts from 2009

सचिन वाकई तुम महान हो..

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सचिन तेंदुलकर जितने महान बल्लेबाज हैं, उतने ही अच्छे इंसान भी। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तीस हजार रनों की दहलीज पर खड़े सचिन का यह कहना कि वे पहले भारतीय हैं और मुंबई सबके लिए है, उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कथित महाराष्ट्रीयन हितों की आड़ में आए दिन विषवमन करते हैं। महाराष्ट्र का जो परिवार ऐसे कृत्यों में संलग्न है उसका मुखिया सठिया चुका है और उनका भतीजा देश के किसी भी पागलखाने के लिए उपयुक्त केस है। अलबत्ता तो सचिन जैसे खिलाड़ी क्षेत्रवाद, जातिवाद जैसी बुराइयों से कोसों दूर हैं, फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि सचिन सिर्फ सचिन इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने देश की टीम से, भारत की टीम से क्रिकेट खेला। सोचो यदि सचिन किसी शारदाश्रम, मुम्बई या फिर महाराष्ट्र की टीम से ही क्रिकेट खेल रहे होते तो क्या उनका कद इतना ऊंचा होता? शायद नहीं। अब आते हैं उस परिवार पर जो महाराष्ट्र के लोगों को अपने ही विचारों से हांकना चाहते हैं। आप गली के कुत्ते के बारे में तो जानते ही होंगे। जब वह अपनी गली में होता है तो बहुत गरियाता है लेकिन जब दूसरी गली में जाता है तो दुम हिलाने लगता है। कमोवेश यही स्थिति इन

कोई तो समझाए इस पागल को

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पागलपन की भी कोई हद होती है लेकिन महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) के मुखिया राजठाकरे की करतूतें रुकने का नाम नहीं ले रही। चर्चाओं में बने रहने के लिए हर रोज कोई न कोई नया फरमान जारी कर देते हैं। अब राज ठाकरे चाहते हैं कि एसबीआई की भर्ती में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए मनसे ने एसबीआई प्रशासन को एक पत्र भी लिखा है। एसबीआई रविवार को यह चयन परीक्षा आयोजित कर रहा है। विघ्नसंतोषी मनसे की यह मांग सहज नहीं है, क्योंकि पिछले साल रेलवे बोर्ड परीक्षा के दौरान भी इसी तरह की मांग उठाई थी जिसने हिंसक रूप धारण कर लिया था। मनसे के कार्यकर्ताओं ने उपनगर मुंबई के 17 परीक्षा केंद्रों पर हमला किया था और उत्तर भारत के परीक्षार्थियों से मारपीट की थी। किसी पागल हाथी को बेलगाम छोड़ दिया जाए तो वह लगातार किसी न किसी का नुक्सान करता रहता है। राज ठाकरे की स्थिति भी महाराष्ट्र में कुछ ऐसी ही हो गई है। यदि समय रहते उस पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब वह महाराष्ट्र के लिए अलग से हवा-पानी की भी डिमांड कर बैठे।

अजय, तुसी तो छा गए यार..

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आपको पता ही है कि पंजाब की माटी के पुत्तर अजय गर्ग ने छह नवंबर 2009 को रिलीज होने वाली मधुर भंडारकर की फिल्म जेल में दाता सुन, मौला सुन.. गीत लिखा है। इस गीत को स्वर दिए हैं स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने। किसी भी युवा गीतकार के लिए इससे ज्यादा गौरव की बात क्या हो सकती है कि उसके जीवन के पहले फिल्मी गीत को स्वर कोकिला ने गाया हो। इस गाने के साथ एक और गौरव जुड़ गया है। दिल्ली के तिहाड़ जेल प्रबंधन ने इस गीत को अपनी सुबह की प्रार्थना में इसे शामिल कर लिया है। यह प्रार्थना गीत है और वर्ष १९५७ में वी.शांताराम की फिल्म दो आंखें बारह हाथ के चर्चित प्रार्थना गीत ऐ मालिक तेरे बंदे हम के स्तर का है। मधुर भंडारकर इस गीत की सफलता को लेकर उत्साहित है। उनका मानना है कि यह गीत नए जमाने का ऐ मालिक तेरे बंदे हम.. साबित होगा। तो फिर देर किस बात की है कलम उठाइए या फिर माउस क्लिक कीजिए और दे डालिए युवा पत्रकार अजय गर्ग को बधाई।

सुनिये, गुनिये लता की आवाज में अजय गर्ग का दाता सुन ले..मौला सुन ले

मस्तमौला अजय। बेहतरीन पत्रकार के साथ जानकार इंसान भी। जो भी करते हैं डूबकर करते हैं, दिल से करते हैं। उनकी कलम का जादू मधुर भंडारकर की आगामी फिल्म जेल में नजर आएगा। इस फिल्म में अजय के लिखे गीत दाता सुन ले...मौला सुन ले.. को वर्ष 1957 में वी.शांताराम की फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ' में कैदियों के लिए 'ए मालिक तेरे बंदे हम..' गीत गाने वाली स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी है। इस फिल्म का गीत-संगीत पिछले दिनों रिलीज हो गया है। निर्देशक मधुर भंडारकर कहते हैं कि गीतकार अजय गर्ग के दाता सुन मौला सुन गीत की पंक्तियों को पढऩे के तुरंत बाद ही उन्होंने फैसला ले लिया था कि इसे केवल लता मंगेशकर ही गाएंगी। भंडारकर ने कहा कि गीत 'दाता सुन मौला सुन' नए जमाने का 'ए मालिक तेरे बंदे' साबित होगा। आप भी इस गीत को सुन सकते हैं-

कम से कम चम्बल का मान तो बढ़ा

रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड की गत दिवस घोषणा हुई, तो यह जानकार सुखद आश्चर्य हुआ कि एक लाख रुपए के प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड फॉर हिन्दी प्रिंट कैटेगरी के अंतिम तीन नामांकन में अपनेराम का भी नाम था। यह अवार्ड स्थापित पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी को मिला है लेकिन अपनेराम को इससे ही संतोष है कि कम से कम चम्बल के बीहड़ों से घिरे ग्वालियर शहर में पत्रकारिता करने वाले किसी पत्रकार के नाम पर इंडियन एक्सप्रेस समूह के इस सम्मानित पुरस्कार के लिए विचार किया गया। इस खबर की जानकारी लगने के बाद कई शुभचिंतकों के संदेश दूरभाष पर मिले हैं। उन सभी मित्रों का मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं। मेरा विश्वास है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। पहले प्रयास को ही इतनी ऊंचाईयां मिल गईं, चम्बल के मौड़ा के लिए तो यही पुरस्कार है। दैनिक भास्कर में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर काम करने की जो आजादी हासिल है उससे इन पुरस्कारों की राह और आसान हो जाती है, इसलिए थैंक्स टीम भास्कर। वैसे इसी साल की शुरुआत में मध्यप्रदेश सरकार की ओर से स्थापित पहला रतनलाल जो