बेटियाँ होती ही ऐसी हैं
आज भी वो दिन याद करता हूं खुद पर हँसी आने लगती है। सोचना हूं वो भी क्या दिन थे। मेरी छोटी सी मासूम रिया। बमुश्किल तीन-चार माह की रही होगी। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ जाती। ऐसा लगता कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती है। दिल-दिमाग को समझाता, अभी वो बहुत छोटी है। किसी को क्या पहचानेगी। मेरी नौकरी की नाव मेरे घर से सवा सौ किमी दूर यमुना किनारे पहुंच गई, मगर हर समय बिटिया का चेहरा ही मेरी आँखों में होता। बिटिया की मुस्कुराहट के प्रति यह मेरा पागलपन ही था कि कई बार जान हथेली पर रखकर भागते-दौड़ते ट्रेन पकड़ी तो कभी सौ किमी की रफ्तार से बाइक को हाइवे पर दौड़ा दिया। जब भी घर पहुंचा वो सोती मिली। फिर भी मुझे लगता कि वो मुझे देखकर मुस्कुरा रही है। अब रिया दस साल की हो गई है लेकिन उसकी वो मुस्कुराहट आज भी मेरे दिल पर गहरे चस्पा है। वाकई बेटियाँ होती ही ऐसी हैं? अजहर हाशमी की रचना- बेटियाँ पावन दुआएँ हैं बेटियाँ शुभकामनाएँ हैं, बेटियाँ पावन दुआएँ हैं। बेटियाँ जीनत हदीसों की, बेटियाँ जातक कथाएँ हैं। बेटियाँ गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियाँ वैदिक ऋचाएँ हैं। जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियाँ वे ...