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Showing posts from June 13, 2010

जय बोलो बाबा केदारनाथ और बद्री विशाल की

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वक्त का पता नहीं पर आंखों में अब भी धुंधली तस्वीर बाकी है। अपनेराम दस या बारह साल के रहे होंगे। खबर आई कि गांव के कुछ बड़े-बुजुर्ग चार धाम की यात्रा पर जा रहे हैं, उन्हें विदाई देने आ जाओ। पुण्य मिलेगा। छोटी बुद्धि, ज्यादा कुछ नहीं समझ पाई। बाबा की अंगुली थामी। ऊंची-नीची पगडंडियां और दगरे पार करते हुए पहुंच गए अपने गांव। मंदिर पर उत्सव-सा माहौल। फूलमालाओं से लदे दो दर्जन से अधिक महिला-पुरुषों की टोली, ग्रामीणों की नजरों का नूर थी। गाजे-बाजे के साथ गांव के बाहर तक टोली को विदाई दी गई। विदाई का वह सीन आज भी जहन में ताजा है। हर कोई गले मिल रहा था। फूट-फूटकर रो रहा था। शायद इस आशंका में जाने वाले से फिर कभी मुलाकात होगी भी या नहीं? खैर सभी लगभग चार महीने बाद सकुशल लौटे। यह वाकया बताने का मकसद महज इतना था कि नौ जून को अपनेराम भी अपने परिवार के साथ इन चार में से दो धाम (केदारनाथ व बद्रीनाथ) की यात्रा पर निकले और १५ जून को लौट भी आए। बाबा केदारनाथ ने अपनेराम की जमकर परीक्षा ली। बहुत गुमान था अपने राम को अपने पर। यह कहने से भी कभी नहीं चूके कि गांव का घी-दूध पिया है, कोसों दूर तक तो यूं ही भ