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Showing posts from November 16, 2008

चरणभाट और कलमभाट

ताल-तलैया की नगरी से ग्वालियर आना हुआ, तो सोचा क्यों न सियासी हलचल की नजर की जाए। जब अपनों (अरे भाई वोई कलमघसीटू क्लर्क) के बीच पहुंचे तो अहसास हुआ कि पूरा निजाम ही बदला हुआ है। जब भी सियासी बयार चलती है, लोगों के चोले बदल जाते हैं। कुछ नेता गिरगिट की उपमा पाते हैं, तो कुछ सियार की। चुनाव के समय नेताओं को चरणभाटों की दरकार रहती है, जो उन्हें चंद पैसे या फिर स्वादिष्ट खाना या कपड़ों की कीमत पर सुलभ हो जाते हैं। चरणभाटों का दस्तूर राजा-महाराजाओं के जमाने का है और एक तरह से सियासतदारों के साथ जनता ने भी इन्हें स्वीकार कर लिया है लेकिन समाज की दशा-दिशा निर्धारित करन वाले कलमभाटों का चलन पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। सियासत में गहरी पैठ रखने वाले कलमभाटों को देश की राजधानी या किसी बड़े नगर में फ्लैट या कार की चाबी मिलने-दिलाने की चर्चाएं कलमकारों के बीच आम रही है। अब यह बीमारी छोटे शहरों तक पहुंचकर कलम को कटघरे में खड़ा कर रही है। इस बार चुनाव में कोई मुद्दा या लहर लोगों के सिर चढ़कर नहीं बोल रही। नेताजी की छवि ही निर्णायक भूमिका में है, इसलिए अपनी छवि को चमकाने के लिए ग्वालियर-चम्ब