हर डाल पर राज ठाकरे बैठा है........

लाख टके का एक सवाल, आखिर बिहारी ही क्यों मार खाते हैं? क्या इसके लिए राज ठाकरे ही पूरी तरह से जिम्मेदार है? इन सवालों का जवाब पाने के लिए हमें कुछ मुद्दों पर विचार करना होगा। नाम जुदा हो सकते हैं पर राज ठाकरे जैसे फितरती और राष्ट्रतोड़क तत्व देश के हर क्षेत्र या प्रदेश में पाए जाते हैं। राज ठाकरे की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है और वे शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे की विरासत को हथियाने के लिए उत्तर भारतीयों को अपने निशाने पर लिए हुए हैं। अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है और यदि कोई कुत्ता अपनी गली में आए बाहरी लोगों पर भौंकता है, तो क्या गलत करता है। राज ठाकरे भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं।

रेलमंत्रीलालू प्रसाद यादव को मुंबई में छठपूजा करने की चुनौती देकर और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को सपरिवार गरियाकर शिवसेना का यह पुराना सैनिक पहले भी धृष्टता कर चुका है। और अब रेलवे की परीक्षा देने आए बिहारियों की मारपीट के पीछे उनकी वोट बैंक की गंदी राजनीति और दूषित मानसिकता ही निहित है ।ऐसा करते समय राज ठाकरे और उनके अनुयायी यह भूल जाते हैं कि यदि देश के अन्य हिस्सों में महाराष्ट्र के लोगों को खदेड़ने का सिलसिला शुरु हो गया, तो क्या होगा और इस दौरान होने वाली हिंसा के लिए जवाबदेह कौन होगा? सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र के लोग नौकरीपसंद होते हैं और वे देशभर में फैले हैं। यह तो हुई राज की बात।

महाराष्ट्र की घटनाओं के विरोध में बिहार में हिंसक घटनाएं हो रही हैं, सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है। गुस्से में अपना घर फुंकने वाले कम से कम अच्छे इंसान तो नहीं हो सकते।यदि आप कभी नईदिल्ली के रेलवे स्टेशन पर गए हों, तो आपके पता होगा कि बिहार जाने वाली प्रत्येक रेलगाड़ी की जनरल बोगी में बैठने के लिए लोगों की लंबी कतारें लगती हैं और इन कतारों को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों को काफी मशक्कत करना पड़ती है। क्या यह दृश्य बिहारियों के खराब छवि पेश नहीं करते। वैसे बिहारियों पर इससे पहले भी निशाने साधे जाते रहे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने यह कहकर चौंका दिया था कि बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों के कारण प्रदेश की मूलभूत सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं। असम के कुछ संगठनों ने भी बिहारियों को खदेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिर बिहारियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है और इसके लिए जवाबदेह कौन है? , यह चिंतन का विषय है।

बिहार में इन्फास्ट्रक्चर का अभाव है, उद्योग-धंधे भी बेहतर स्थिति में नहीं है। इस कारण बिहारी युवक रोजगार की तलाश में दीगर प्रदेशों की राह पकड़ते हैं। बड़े-बड़े राजनेता भी इस मूल समस्या का समाधान खोजने की बजाय जोकरगिरी करने और युवाओं को ठाकरे मार्ग के लिए उकसाने में ही व्यस्त हैं। ऐसे हालात में तो बिहारियों के साथ जो आज महाराष्ट्र या असम में हो रहा है, वह किसी और प्रदेश में भी होगा। बेहतर होगा राजनेता मिल-बैठकर प्रदेश के इन्फास्ट्रक्चर को सुधारें और रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराएं। बेरोजगारी से कोई भी प्रदेश या क्षेत्र अछूता नहीं है। ऐसे में रोजगार के अवसर पर पहला अधिकार उस प्रदेश के युवा का ही होना चाहिए। पिछड़े या कमजोर राज्यों के युवाओं के लिए कुछ स्थान आरक्षित किए जा सकते हैं।

Comments

सही कह रहें आप . हमेशा के तरह इस मुद्दे की जड़ समस्या पर ध्यान ना देकर राजनीति का रंग दिया जा रहा है .
झूठ झूठ झूठ... कोई बिहारी नहीं पिटा मुंबई में. सब झूठ.
मनोज भाई वहां सिर्फ वे पिटे जिनके हाथ खाली थे, जो कमजोर थे, जो सपने लेकर गए थे. क्या महाराष्ट्र क्या बिहार, पूरा देश फिर से महाराष्ट्र हो रहा है. इंदौर अगली जमीन है. देखते रहिए. करते रहिए हाय हाय और बनाते रहिए बिहार. जब आग लगती है तो खूब चिल्ल पौं होने लगती है. अभी देखिए और कितना जलता है. देवास देखा न. जिंदा जलाया है वहां जिंदा. तौलिए अब सबको एक साथ रखकर. क्या होने वाला है तस्वीर एकदम झकास साफ है.
29 नबंवर नजदीक आहे. मध्यप्रदेश फतह की तैयारी है. इन्हीं लोगों की. वे जीत भी जाएंगे. तय मानिए.
Manuj Mehta said…
गीता-ओ-कुरान जला दो, बाइबल का करो प्रतिवाद,
आओ मिल कर लिखें हम एक महाराष्ट्रवाद.

Popular posts from this blog

जय बोलो बाबा केदारनाथ और बद्री विशाल की

अपनेराम पहुंचे चम्बल के बीहड़ में

बाबा रामदेव आप तो ऐसे ना थे...?