लो आ गए अपनेराम

चम्बल के सब भईयन को अपनेराम की राम-राम।
अपने भईयन से मिलवे को बहुत दिना से मन हतो, मगर का करते नौकरी के फेर में ताल-तलैयन की नगरी में पहुंच गए। अपने आप में इतने उलझ गए कि भईयन के बारे में सोचऊ न पाए। खैर, गुस्ताखी माफ। अब आपको शिकायत का मौका नहीं देंगे। कोशिश करेंगे कि दो-चार दिना छोड़के आपके पास तक अपनी बात जरूर पहुंचा दें।
पहले अपनेराम के बारे में। चम्बल की माटी में पले-बढ़े और खेले अपनेराम की कलम बहुत दिना से कुलबुला रही थी कि चुनावी बरसात से पहले अपने भईयन को सुख-दुख बांटो जाए। यह हम नहीं कहते, बल्कि खरे सोने की तरह यह बात जगजाहिर है कि चम्बल वाले जो कहते हैं मुंह पर कहते हैं। पीठ के पीछे वार करना आता नहीं। इसलिए अपनेराम की भी यही ख्वाहिश है कि अपनी और आपकी बात पूरी दमदारी से रखी जाए। कहते हैं ना, एक अंगुली से मुट्ठी भली। हम भी चाहते हैं कि जब भी अपनी और आपकी बात हो, तो एक शायर को मिलने वाली दाद जरूर मिले। अच्छी मिलेगी तो कुछ और अच्छा लिखने का उत्साह मिलेगा। और यदि बुरी मिली तो यह कमियों को सुधारने के लिए प्रेरित करेगी।
आपके मन में यह ख्याल जरूर आ रहा होगा कि यह अपनेराम आखिर आ कहां से गए? तो यह भी जान लो। ग्वालियर के हर छोटे-बड़े खबरनवीस से अपना याराना रहा है। भिंड से ग्वालियर आए पाठकों के पाठक और अपने बड़े भाई से पत्रकारिता के शुरुआती दौर में अपनेराम की खूब छनती थी। आचार-विचार भी मिलते थे, इसलिए इसका असर खबरों में भी झलकता था। दोनों के ही कॉलमों में अपनेराम गाहे-बगाहे आ ही जाते थे।
अगली बार बताएंगे-अपनेराम कैसे पहुंचे निर्भय के पास
तब तक के लिए अपनेराम की राम-राम।

Comments

bhuvnesh sharma said…
अपनेराम को सलाम

अपन भी चंबल की माटी से ही हैं...मुरैना में निवास है.

कभी-कभार कीबोर्ड चला लेते हैं-
www.hindipanna.blogspot.com

आपका ब्‍लॉग पढ़कर अच्‍छा लगा.

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