अपनेराम बागियन के बीच

जिन भईयन ने उत्साह बढ़ाओ उन्हें अपनेराम की सिंगल राम-राम और जिन भईयन ने अब तक सच को सलाम ना देखो, उन्हें डबल राम-राम। कन्फ्यूज्ड न होऊ भईया। अपनेराम ने एक कहानी पढ़ी हती, बाको सार हम आपऊ ऐ बता देत हैं- एक गांव में एक स्वामी जी पहुंचे। जिन लोगन ने आदर-सत्कार करो उन्हें तो स्वामी जी ने गांव से बाहर जावे को आशीर्वाद दओ और जिन लोगन ने उन पर पत्थर फेंके उन्हें गांव में ही रहवो को आशीर्वाद दओ। स्वामी जी के शिष्य ने जाकी वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि अच्छे लोग बाहर जाएंगे, तो अच्छाईयां फैलाएंगे और बुरे लोग बाहर जाएंगे तो बुराईयां फैलाएंगे। अरे जा इमोशनल ड्रामा में हम तो भूल ही गए कि भईयन से हमने कछु बतावे को वादा करो हतो। तो सुनो,जब हम तीनों (अपनेराम, फोटोग्राफर व टैक्सी ड्राइवर) के आंखन पर बंधी कपड़ा की पट्टी हटाई गई, तो हमने खुद को बड़ी-बड़ी दाड़ी-मूंछों वाले बंदूकधारियों के बीच पाया। कोऊ ने मुंह पर कपड़ा लपेटो हतो थो, तो कोऊ सब्जी-भाजी के इंतजाम में लगो थो और घड़ी के कांटे ने बजा दए थे दिन के पूरे बारह। फर्श पर पसरकर बैठा दस्यु सरदार निर्भय व्हिस्की के घूंट गटककर अपने गले को तर कर रहा था। देखते ही वह बोला- आ गए, कोऊ दिक्कत तो नहीं भई। हमने ना में सिर हिला दिया और उसके पास जाकर बैठ गए। फल-बिस्कुट के साथ बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया। वह अपने जीवन से जुड़े हर पहलू पर धाराप्रवाह बोलता रहा। कुछ अवसर ऐसे भी आए जब लगा कि बागी सरदार बहक रहा है। विशेषकर राजनीति और गिरोह से फरार अपनी बीवी नीलम व दत्तक पुत्र श्याम को लेकर उसकी बातें लगातार विरोधाभासी थीं।खैर, दिन के तीन बजे हमाए खावे को बंदोवस्त भओ। हमए लाने स्पेशली निर्भय ने घी से तरबतर दाल-टिक्कर और ककोरा की सब्जी बनवाई थी। खाते समय ही हमे मालूम भओ कि गिरोह में सत्तर से ज्यादा मेंबर हैं। जो मेंबर केजुअल है उनके मुंह पर कपड़ा बंधो है और जो मेंबर परमानेंट हैं वो मुंह खोलके घूम रहे हैं। तब गिरोह के पास दूरदराज की २४ पकड़ें (डाकुओं द्वारा अपहृत करके लाए गए लोग) थी। बागियन की मंशा कोऊ से दो लाख, तो कोऊ से पांच लाख रुपैया वसूलवे की हती। पकड़ें ही सबके लानै रोटी-पानी का बंदोवस्त करती थी और जब गिरोह एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए जाता, तो पूरा सामान भी इन्हीं लोगों पर गधे की तरह लाद दिया जाता। जरा सी भी चालाकी या शिथिलता उनकी जान तक ले सकती थी।
इमोशनल हो गए अपनेराम- गिरोह के पास इटावा व कानपुर के छह-सात साल के दो बच्चे भी थे। यह बच्चे कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे लेकिन अपहरण के बाद डकैतों के संग रहने की वजह से इनके तौर-तरीके बदल गए थे। बात-बात में मां-बहन की गालियां उनके मुंह पर आ जाती और मासूमियत के चलते अन्य अपहृतों पर जल्दी रोटी सेंकने का दबाव बनाने के लिए उन्हें लकड़ियों से पीटते। जब एक लड़के ने ट्विंक्कल-ट्विंक्कल लिटिल स्टार पोइम सुनाई, तो अपनेराम इमोशनल हो गए। क्योंकि उनके भी बच्चे तब इसी एजग्रुप के थे।
गांव वालों का था समर्थन- दस्यु सरगना ने अपनेराम को क्या-क्या बताया, यदि इस पर प्रकाश डाला तो पूरा उपन्यास तैयार हो जाएगा। इसलिए मुलाकात का सार आपको बता देत है। निर्भय जिस स्थान पर पूरे गिरोह के साथ ठहरा था, वहां से बमुश्किल एक किमी के दायरे में पीएसी की टुकड़ी के साथ ही एक थाना भी था, मगर अपने नाम के अनुरूप निर्भय पूरी निर्भीकता के साथ ठहरा हुआ था। दोपहर के समय चरवाहों का गिरोह से मेल-मिलाप हो रहा था, तो सांझ ढले आसपास के गांवों के कई महिला-पुरुष दस्यु सरगना के दरबार में हाजिर थे। हर कोई अपनी समस्या उसे सुना रहा था। यहां हमें बताया गया कि इन गांवों में कोई भी समस्या होती है, तो लोग कोर्ट-कचहरी में जाने की बजाय निर्भय की पंचायत में जाना पसंद करते हैं और इस पंचायत में दस्यु सरदार जो भी निर्णय करता है, उसे वह सिर-माथे लगाते है। यही वह विश्वास था जिसके कारण यह बागी चम्बल के बीहड़ों में तीन दशक से भी ज्यादा समय तक स्वच्छंद होकर घूमता रहा।
जब हुई हमारी हालत खराब- सिक्के का दूसरा पहलु नहीं बताएंगे, तो भईयन से करो सच को वादो पूरा नहीं होगो। ऐसा नहीं है कि अपनेराम बहुत बहादुर हते, जो डाकू की मांद में बैठकर लंबी-चौड़ी बात करते रहे। हकीकत यह है कि दो बार अपनेराम की भी हालत पतली हो गई थी। हुआ यूं कि गिरोह की एकमात्र महिला सदस्य सरला ने दिल खोलकर बातें की। फोटोसेशन के दौरान उसने अपनेराम के एक कंधे पर एके-४७ राइफल टांगी और दूसरे कंधे पर खुद हाथ रखकर खड़ी हो गई। बस इसी सीन पर दूर बैठे बागी सरदार की नजर क्या पड़ी, उसने तो अपनेराम पर गंभीरता के साथ बंदूक ही तान दी। कुछ पल आंखे तरेरी और फिर मुस्करा दिया, तब कहीं अपनेराम की जान में जान आई। इसी प्रकार रात के तीन बजे जब अपनेराम ने शराब के नशे में धुत हो चुके निर्भय गुर्जर से जाने की इजाजत मांगी, तो वह फैल गया और बोला- अए हो हमई मरजी से और अब जए हो हमई मरजी से। यह सुनकर हमई तो हालत ही खस्ता हो गई। काहे की डाकुअन को कोऊ भरोसा तो होत नानै। दो-चार दिनऊ रोक लओ या घरवालेन को रुपैया भेजवे की चिट्ठी भेज दई, तो हम वैसे ही मर लेते। रात में ही अपने अखबार के कानपुरवाले पंडित जी को अपना दुखड़ा सुनाया, तो इस छोटे भाई की व्यथा से बड़े भाई भी विचलित हो गए। खैर, सुबह पांच बजे हम जैसे पट्टी बांधकर गिरोह तक पहुंचे थे, वैसे ही ईंट के भट्टे तक हमारी वापसी भी हुई। हमारी विदाई से पहले ही गिरोह ने अपना साजो-सामान अन्यत्र जाने के लिहाज से समेट लिया था, ताकि अपनेराम की नीयत में खोट आ जाए और वे पुलिस तक पहुंच जाए तो भी गिरोह को कोई नुकसान न पहुंचे। अपनेराम जब लौटे, तो पुलिस को कहीं से इस मुलाकात की सूचना मिल गई। चम्बल के बीहड़ से लौटकर अपनेराम ने कानपुर के पंडितजी का आशीर्वाद लिया और फिर इस मुलाकात को अपने अखबार के नौ अगस्त व दस अगस्त के अंक में विस्तार से लिखा, जो देशभर में फैले अखबार के सभी संस्करणों में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ।
तो यह था निर्भय पुराण। जाए बतावे के पीछे अपनेराम की इच्छा बस इतनी हती कि चम्बल के भईयन को हमारी हिम्मत पर विश्वास हो जाए। अपनेराम ने चम्बल के सच को सलाम करवे के लाने ब्लॉग को झंडा उठाओ है। यदि चम्बल के भईयन को साथ नहीं मिलो तो औरन की तरह अपनेराम भी चुपचाप बैठ जांगे। उम्मीद है चम्बल के बदनाम करने वाले अफसरों, नेताओं की प्रमाणिक जानकारी पहुंचाकर आप इस ब्लॉग आंदोलन में सहभागी बनोगे। अगले बार हम जब सच को सलाम की चौपाल पर मिलेंगे, तो चर्चा करेंगे कि हम चुनावी बरसात की बुराईयों से चंबल को कैसे महफूज रख सकते हैं। एक बार फिर सब भईयन को अपनेराम की राम-राम।

Comments

का कै रहे हो भइया... इत्ती जल्दी खतम भी कर दऔ निर्भय पुरान.. अरे अभई तो मजा आवो शिरू हो रऔ तो.. जे गलत बात है.. बहुत नाइंसाफी है रे बहुत नाइंसाफी.. इतना बडा करेजा वाला डाकू और बस तीन ही पोस्ट का सोचे थे अपने राम सरदार बहुत खुश होगा... सजा मिलेगी बरोबर मिलेगी..
Anonymous said…
im your favorite reader here!
चम्बल अपने दिल में कई राज समेटे है..
बहुत कुछ है चम्बल के दिल में ...
स्वागत ब्लॉग जगत में...
मनोज भाई,

आपका ब्लाग तो काबिले तारीफ है। अखबार मे पूरा पेज पढ़ा था। तब भी आपको बधाई दी थी। अब आपका ब्लाग पूरा देश देख रहा है। फिर से बधाई स्वीकार करें। हमारी भाभीजी का ख्याल रखना। ऐसा न हो कि ताल-तलैया के शहर में हमें ही भूल जाओ।
आपके ब्लाग को मै अपने ब्लाग के साथ कैसे जोड़ सकता हूं।

भानु प्रताप सिंह
मनोज भाई,

आपका ब्लाग तो काबिले तारीफ है। अखबार मे पूरा पेज पढ़ा था। तब भी आपको बधाई दी थी। अब आपका ब्लाग पूरा देश देख रहा है। फिर से बधाई स्वीकार करें। हमारी भाभीजी का ख्याल रखना। ऐसा न हो कि ताल-तलैया के शहर में हमें ही भूल जाओ।
आपके ब्लाग को मै अपने ब्लाग के साथ कैसे जोड़ सकता हूं।

भानु प्रताप सिंह
aapki bahaduri ko salam
वाह! कतई आसान नहीं था एक जोखिम भरा अभियान

Popular posts from this blog

जय बोलो बाबा केदारनाथ और बद्री विशाल की

अपनेराम पहुंचे चम्बल के बीहड़ में

बाबा रामदेव आप तो ऐसे ना थे...?