जय बोलो बाबा केदारनाथ और बद्री विशाल की


वक्त का पता नहीं पर आंखों में अब भी धुंधली तस्वीर बाकी है। अपनेराम दस या बारह साल के रहे होंगे। खबर आई कि गांव के कुछ बड़े-बुजुर्ग चार धाम की यात्रा पर जा रहे हैं, उन्हें विदाई देने आ जाओ। पुण्य मिलेगा। छोटी बुद्धि, ज्यादा कुछ नहीं समझ पाई। बाबा की अंगुली थामी। ऊंची-नीची पगडंडियां और दगरे पार करते हुए पहुंच गए अपने गांव। मंदिर पर उत्सव-सा माहौल। फूलमालाओं से लदे दो दर्जन से अधिक महिला-पुरुषों की टोली, ग्रामीणों की नजरों का नूर थी। गाजे-बाजे के साथ गांव के बाहर तक टोली को विदाई दी गई। विदाई का वह सीन आज भी जहन में ताजा है। हर कोई गले मिल रहा था। फूट-फूटकर रो रहा था। शायद इस आशंका में जाने वाले से फिर कभी मुलाकात होगी भी या नहीं? खैर सभी लगभग चार महीने बाद सकुशल लौटे।
यह वाकया बताने का मकसद महज इतना था कि नौ जून को अपनेराम भी अपने परिवार के साथ इन चार में से दो धाम (केदारनाथ व बद्रीनाथ) की यात्रा पर निकले और १५ जून को लौट भी आए। बाबा केदारनाथ ने अपनेराम की जमकर परीक्षा ली। बहुत गुमान था अपने राम को अपने पर। यह कहने से भी कभी नहीं चूके कि गांव का घी-दूध पिया है, कोसों दूर तक तो यूं ही भागकर चले जाया करते थे। माँ वैष्णोदेवी के दरबार में हर साल हाजिरी लगाने का दस्तूर पिछले डेढ़ दशक से निभाया है, यही सोचकर अनुमान लगा लिया था कि बाबा केदारनाथ की चौदह किमी की चढ़ाई आसानी से पार कर जाएंगे। कीचड़-पानी से भरी उबड़-खाबड़ चढ़ाई को अगल-बगल से टकराकर गुजरते खच्चरों के काफिले कुछ ज्यादा ही दुष्कर बनाते रहे। गिरते-पड़ते, हांफते-बैठते दस किमी का सफर तय कर लिया लेकिन उसके बाद शरीर जवाब दे गया। हर कदम किलोमीटर-सा भारी लगने लगा। खच्चरों का सहारा लेकर बाबा के दरबार तक पहुंचे। यहां बता दें मेरा बेटा दक्षप्रताप (१०) और दीक्षा सिंह (०९) अपनी दादी(५५) का सहारा बने और उनकी अंगुली पकड़कर बिना किसी बाधा के पैदल ही बाबा के दरबार तक पहुंचे।
मंदिर के चारो ओर पहाड़ की चोटियों पर बिछी बर्फ की सफेद चादर और रिमझिम बरसात तन-मन को निरंतर शीतल करती रहीं। वैभवशाली मंदिर में पूरे सुकून और इत्मीनान के साथ जब बाबा केदारनाथ का साक्षात्कार हुआ, तो दिल बाग-बाग हो गया। थकान भी छूमंतर हो गई।लौटते समय अपनेराम ने घोड़ों पर ही सवारी करने में भलाई समझी, मगर यह राह भी आसान नहीं रही। कष्ट हर पल परीक्षा लेते नजर आए। कई बार घोड़ा फिसला, तो कई बार गहरी खाइयों के किनारे चलते घोड़े के गिरने की आशंका ने डरा दिया। अंधेरे रास्ते में निरीह जानवरों की पीठ पर सवारी गांठने का विकल्प अपनेराम ने खुद ही चुना था इसलिए कुछ कहना भी ठीक नहीं है।
हमारा अगला पड़ाव रहा बद्री विशाल का दरबार। आकाश चूमती पहाड़ी चोटियां और आसपास से गुजरने का अहसास कराते आवारा बादल सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं, तो प्राचीन मंदिर की सुंदरता हर किसी को सम्मोहित कर लेती है। प्रकृति का खेल देखिए, एक ओर कल-कल बहती अलकनंदा का शीतल जल अंगुलियों में सिहरन पैदा करता है तो दूसरी ओर उसके ठीक बगल में मौजूद गरम कुण्ड का पानी दर्शनार्थियों को उल्लासित करता है। दोनों ही धाम की महिमा व प्राकृतिक सौंदर्य इतना विराट और वैभवशाली है कि पूरी किताब बड़ी सहजता से लिखी जा सकती है। बचपन की उस तस्वीर से जब आज के सफर के तुलना करता हूं तो लगता कि वाकई उस जमाने में केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन कितने दुष्कर व कठिन रहे होंगे। शायद तभी बड़े-बुजुर्ग अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से फारिग होने के बाद चार धाम की यात्रा के बारे में सोचते थे और जाते समय विदाई भी इसी अंदाज में दी जाती थी कि दर्शन करके लौट आए तो भगवान की कृपा, वरना रास्ते में कुछ हो गया तो मोक्ष की प्राप्ति।

Comments

सही कहा। केदार बाबा ने अगर खूब परीक्षा ली तो बद्री बाबा ने दो बार दर्शन दिए। हम उस दर्द के भी सहभागी बने जो केदार बाबा की चढाई में आपने-हमने झेला और बद्री बाबा के मनोरम दर्शन भी किए।
उम्मीद नहीं यकीन है कि बाकी बचे दो धाम भी हम जल्दी साथ करेंगे।
jai Badri-Kedar ! 'Badri Vishal laal kee jay'-- ye Garhwal regiment ka Yuddh ghosh bhee hai !
Anonymous said…
read this.....

http://shivputraekmission.blogspot.com
xman said…
i am great fan of these kind of yatras. please keep posting. its really amazing and wonderful.
resume said…
बद्रीनाथ तो जैन धर्म के प्रवर्तक आदिनाथ भगवन का मंदिर है जिसे शंकराचार्य ने जबरदस्ती से परिवर्तित करा लिया | और कुछ गिने चुने हिन्दू मंदिरों (जबरदस्ती कब्जाए जैन मंदिर) के अलावा आप कहाँ जैन प्रतिमा की तरह ध्यानस्थ प्रतिमा देखते हो |
वैसे आपके इस धर्म प्रेमी स्वाभाव के हम कायल हैं पर फिर भी गौर फरमैयेगा |
एक बार जोशीमठ गयी थी बहुत ही अच्छा लगा था, बदरीनाथ नहीं जा पाई इसका थोडा अफ़सोस हुआ, केदारनाथ तो अभी तक नहीं जा सकीं हूँ.. आज आपकी पोस्ट पढ़कर और सुन्दर तस्वीर देखकर लगा जैसे बैठे बैठे दर्शन हो गए...

जय बाबा केदारनाथ और बद्री विशाल की!
बहुत सुन्दर विहंगम प्रस्तुति के लिए आभार
आपने बद्री विशाल के दर्शन किये ! बहुत बहुत बधाई !केदार नाथ जी तो नहीं जा सका ,परन्तु बद्री विशाल जाने का सौभाग्य तीन बार मिल चुका है. अबकी बार ३१मई की शाम को पंहुचे ! १ जून को रात रुकना पड़ा ! सारी रात बारिस ने कंप कम्पी चढा दी.और २ जून को सुबह बर्फ पड़ने लगी ,सब कुछ सफेद हो गया.स्थानीय लोगों ने बताया की जून के पहले सप्ताह में बर्फ बारी हमने नहीं देखी.हमने रास्ता रुकने के डर से बर्फ बारी में ही निकलने का निर्णय लिया.क्यूंकि मेरी धर्म पत्नी ह्रदय रोगी है.हमें ये डर सताने लगा अगर मार्ग बंद हो गए तो रोगी के लिए मुश्किल आ सकती है.बाबा बद्री विशाल जाने का मन बार बार करता है,वो अद्भुत वातावरण ,पर्वतमाला ,आकर्षित करती हैं. जय बद्री विशाल.
Very Very Nice Blog Thanks for sharing with us
Puneet said…
ha ha ha ....bahut achcha likha hai...

sri ji ke mandir ke smane ki tasveer bhi achchi hai...

agar aap badrinath aur kedarnath se jude hue kuchh aur blogs pists padhna chahte hai to kripya neeche diye link per click kare :)


http://badrikedaryatra.blogspot.com/
alka mishra said…
यथार्थ वाकई दुष्कर होता है

हमारे देश में एक मिथक चला आ रहा है कि देवता सोमरस का पान करते हैं और अप्सराओं के साथ राग रंग में स्वर्ग का आनंद उठाते हैं .वह सोम रस क्या है ? सोम का अर्थ है चन्द्रमा और चंद्रदेव को ही जड़ी बूटियों का अधिपति माना गया है .इन जड़ी बूटियों में चन्द्रमा अपनी किरणों से उज्ज्वलता और शान्ति भरते हैं .इसीलिए इन जड़ी बूटियों से जो रसायन तैयार होकर शरीर में नव जीवन और नव शक्ति का संचार करते हैं उन्हें सोमरस कहा जाता है .

ऐसा ही एक सोमरस रसायन मुझे तैयार करने में सफलता मिली है जिसमे मेहनत और तपस्या का महत्वपूर्ण योगदान है .वह है- निर्गुंडी रसायन
और
हल्दी रसायन
ये रसायन शरीर में कोशिका निर्माण( cell reproduction ) की क्षमता में ४ गुनी वृद्धि करते हैं .
ये रसायन प्रजनन क्षमता को ६ गुना तक बढ़ा देते हैं .
ये रसायन शरीर में एड्स प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर देते हैं
ये रसायन झुर्रियों ,झाइयों और गंजेपन को खत्म कर देते हैं
ये रसायन हड्डियों को वज्र की तरह कठोर कर देते हैं.
ये रसायन प्रोस्टेट कैंसर ,लंग्स कैंसर और यूट्रस कैंसर को रोकने में सक्षम है.

अगर कोई इन कैंसर की चपेट में आ गया है तो ये उसके लिए रामबाण औषधि हैं.
अर्थात
नपुंसकता,एड्स ,कैंसर और बुढापा उन्हें छू नहीं सकता जो इन रसायन का प्रयोग करेंगे .
मतलब देवताओं का सोमरस हैं ये रसायन.
9889478084
Moti lal said…
बढ़िया जानकारी धन्यवाद कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारकर अपनी ray de
www.gyankablog.blogspot.com

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