tag:blogger.com,1999:blog-36420638202172395652024-03-13T19:51:25.993+05:30सच को सलामचम्बल के बीहड़ का नाम सामने आते ही आंखों के सामने घूम जाती है लंबी मूंछों और घनी दाढ़ी वाले डकैतों की तस्वीर। क्या यही है चम्बल का सच? शायद नहीं। भले ही चम्बल की माटी ने बागियों (डकैतों) को आश्रय दिया हो, लेकिन उसने ग्वालियर-चम्बल अंचल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को अपने आँचल से लगाए रखा। और माटी में ऐसी तासीर जगाई कि चम्बलराइट्स को सच कहने व सुनने की हिम्मत मिल सके। यदि सच से है आपका भी वास्ता, तो चम्बल के बीहड़ में स्वागत है आपका...।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-30202296161230710572020-08-15T21:54:00.001+05:302020-08-15T21:54:56.596+05:30शुभकामनाएं मित्र माही..<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://1.bp.blogspot.com/-qxRw8PxWKfk/XzgMD7Szg9I/AAAAAAAABfU/5_XCx3eSxRsddgczonZcM1TYLeCgk5rKgCLcBGAsYHQ/s960/17192175_10210623851785608_6805340375512901804_o.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="540" data-original-width="960" src="https://1.bp.blogspot.com/-qxRw8PxWKfk/XzgMD7Szg9I/AAAAAAAABfU/5_XCx3eSxRsddgczonZcM1TYLeCgk5rKgCLcBGAsYHQ/s640/17192175_10210623851785608_6805340375512901804_o.jpg" width="640" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://1.bp.blogspot.com/-e8F2etoxBzE/XzgMEY3w9LI/AAAAAAAABfY/oiszyojE_Ksi-J3pciXSvvUerxfPPSsxQCLcBGAsYHQ/s960/17349598_10210623851825609_2636029585954751776_o.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="540" data-original-width="960" src="https://1.bp.blogspot.com/-e8F2etoxBzE/XzgMEY3w9LI/AAAAAAAABfY/oiszyojE_Ksi-J3pciXSvvUerxfPPSsxQCLcBGAsYHQ/s640/17349598_10210623851825609_2636029585954751776_o.jpg" width="640" /></a></div> <br /><span style="background-color: white; color: #1c1e21; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px;">अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों में अब धौनी-धौनी का शोर सुनाई नहीं देगा लेकिन भारतीय क्रिकेट में आए उल्लास-गर्व के असीमित अवसर याद दिलाते रहेंगे। सबसे सफल कप्तानों में से एक माही का अगला कदम क्या होगा या अगले पल वह क्या फैसला करेंगे? ऐसे किसी भी सवाल का जवाब उनके सालों के साथियों के पास भी नहीं। अपने हर फैसले से चौंकाने में माहिर हैं माही। पंद्रह अगस्त की शाम को भी ऐसा ही हुआ। भारतीय क्रिकेट का यह राजकुमार एक महान क्रिकेटर के साथ अच्छा इंसान भी है। वह शोर नहीं करता। धीर-गंभीर रहकर शांति के साथ अपने काम को अंजाम देता है। क्रिकेट का ‘हेलीकाप्टर’ उड़ाने वाले माही के साथ हर मुलाकात शानदार रही। दिल खोलकर बातें हुईं लेकिन आफ दि रिकार्ड। धौनी जिस भी क्षेत्र में रहेंगे सफलताएं उनके कदमों में होंगी। नई पारी के लिए शुभकामनाएं मित्र माही.....</span><p></p>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-47928517396833288852011-01-03T21:21:00.003+05:302011-01-03T22:38:18.475+05:30सचमुच, पापा पास हो गए<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><br />
<a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TSIBTessTzI/AAAAAAAAAUM/prL5KCPq7_U/s1600/DSCN0387.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TSIBTessTzI/AAAAAAAAAUM/prL5KCPq7_U/s320/DSCN0387.JPG" width="320" /></a>पहाड़ी वादियों की सुंदरता का जादू सिर चढ़कर बोलता है। बच्चों की जिद थी कि इस बार नया साल पहाड़ी वादियों में ही सेलीब्रेट किया जाए। जिद के आगे अपनेराम भी झुक गए। दिल्ली में रहने वाले बचपन के मित्र को तैयार किया और पूरे परिवार के साथ रवाना हो गए पहाड़ी वादियों की ओर। हल्द्वानी से तल्लारामगढ़, नथुआखानद्वारा और फिर वहां से हरतोला। जितना रोमांच पहाड़ी ड्राइव में आया, उससे कहीं अधिक दिल खुश हुआ हरतोला के कॉटेज में। दूर-दूर तक आबादी का नाम-ओ-निशां नहीं। जिस ओर भी नजर दौड़ाओ, बर्फ से लकदक हिमालय के गगनचुंबी पहाड़ ही नजर आते। बच्चे जल्द ही आपस में हिल-मिल गए और देसी-विदेशी खेलों की दुनियां में खो गए। ड्राइव की लंबी थकान के चलते पहली रात कैसे कट गई, पता ही नहीं चला। रात को ही बरसात का सिलसिला शुरु हो गया। सुबह छह बजे बर्फवारी ने दस्तक दे दी। लगातार एक ही गति से बर्फ का गिरना जारी रहा। लगभग चार घंटे में आधा फीट तक बर्फ जमा हो चुकी थी। कॉटेज से जिस ओर भी नजर गई बर्फ की चादर ही नजर आई। सबने जमकर बर्फवारी का आनंद लिया। बच्चों के साथ बड़े भी बच्चे हो गए। बर्फवारी की गति देखकर अंदाज लगाना मुश्किल था कि यह कब थमेगी। कॉटेज के केयरटेकर और उसके साथियों की चिंता भी बर्फवारी के साथ बढ़ती जा रही थी। उनका अंदाज था कि ऐसे ही बर्फवारी होती रही तो देर रात तक दो फीट बर्फ जम सकती है। ऐसे में पहाड़ की जिंदगी ठहर जाएगी और सड़कों पर वाहनों का आवागमन नहीं हो सकेगा।<br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TSIA2OZMhfI/AAAAAAAAAUI/y6B5WWb5Zs0/s1600/DSCN0382.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TSIA2OZMhfI/AAAAAAAAAUI/y6B5WWb5Zs0/s320/DSCN0382.JPG" width="320" /></a>बर्फवारी का आनंद उठा चुके थे। अब वहां से निकलने की चिंता थी। तत्काल निर्णय लिया और दोनों मित्रों ने अपने वाहन लेकर निकल पड़े। ऊबड़खाबड़ पहाड़ी रास्ता और उस पर बर्फ की चादर। हल्के से ब्रेक लगाने पर गाड़ी के बहककर खाई में जाने का डर। गाड़िया १०-१५ की स्पीड से रेंगती रहीं। तल्ला रामगढ़ तक का सफर ऐसे ही चला, मगर रामगढ आते-आते बर्फवारी के साथ-साथ कोहरे व ओले ने भी अपनेराम और उनके मित्र की जमकर परीक्षा ली। विपरीत हालात में रात के अंधियारे में पहाड़ी रास्तों पर गाड़ी ड्राइव करना हर पल खतरे को बुलाने जैसा था, फिर भी हम हिम्मत और साहस के साथ भीमताल तक सुरक्षित पहुंच गए। कड़कड़ाती सर्दी में माथे से टपकता पसीना अपनेराम की घबराहट बयां कर रहा था, इसी बीच बच्चे के मुंह से बरबस ही निकला-पापा आप पास हो गए। यह कमेंट सुनकर कोई भी हंसी नहीं रोक पाया।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-14999302342571826212010-10-24T18:35:00.000+05:302010-10-24T18:35:02.363+05:30ठगों के खिलाफ हिन्दुस्तान का अभियान अभी जारी है...<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQsxMXAhFI/AAAAAAAAATQ/didUvVNsx5Y/s1600/final3.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQsxMXAhFI/AAAAAAAAATQ/didUvVNsx5Y/s400/final3.jpg" width="254" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQs4hC5PPI/AAAAAAAAATU/Sj5DIn6dq6s/s1600/final4.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQs4hC5PPI/AAAAAAAAATU/Sj5DIn6dq6s/s400/final4.jpg" width="255" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQs-Rg4UdI/AAAAAAAAATY/L6gslnvLk-4/s1600/final5.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="242" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQs-Rg4UdI/AAAAAAAAATY/L6gslnvLk-4/s400/final5.jpg" width="400" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQtgpt_9jI/AAAAAAAAATc/GXyDZjka9cI/s1600/final6.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="270" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQtgpt_9jI/AAAAAAAAATc/GXyDZjka9cI/s400/final6.jpg" width="400" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQtm8KK7iI/AAAAAAAAATg/g_DkwqDHyLY/s1600/final7.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="305" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQtm8KK7iI/AAAAAAAAATg/g_DkwqDHyLY/s400/final7.jpg" width="400" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQukKM_tZI/AAAAAAAAATk/oyM1KFUlHVQ/s1600/final9.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="293" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TMQukKM_tZI/AAAAAAAAATk/oyM1KFUlHVQ/s400/final9.jpg" width="400" /></a></div><span id="goog_1031449735"></span><span id="goog_1031449736"></span>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-34831146466636393422010-10-21T13:32:00.000+05:302010-10-21T13:32:23.799+05:30सार्थक पहल हिन्दुस्तान की<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TL_x6qkSdsI/AAAAAAAAAS4/EMrcuGYG4GY/s1600/final1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TL_yFrxIiQI/AAAAAAAAAS8/uKbLKJE20AY/s1600/final2.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="182" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TL_yFrxIiQI/AAAAAAAAAS8/uKbLKJE20AY/s200/final2.jpg" width="200" /></a>कौन कहता है मीडिया नख-दंतविहीन है। दैनिक हिन्दुस्तान के आगरा संस्करण ने बेईमान और ठग बिल्डरों के खिलाफ जागो आगरा अभियान शुरु किया है। पाठकों से इस सार्थक पहल का जबर्दस्त रिस्पांस मिला है।बिल्डरों ने किसी की जीवनभर की गाढ़ी कमाई लूट ली, तो किसी को अच्छे घर का सपना दिखाकर ठग लिया। हर कोई दुखी है। ट्रिपल बी (बिल्डर, ब्रोकर और बैंक) का काकस पग-पग पर लोगों को ठग रहा है लेकिन सरकारी मशीनरी गुड़ खाए बैठी है।क्या आप भी हमारा साथ देंगे? <br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TL_x6qkSdsI/AAAAAAAAAS4/EMrcuGYG4GY/s1600/final1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="305" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TL_x6qkSdsI/AAAAAAAAAS4/EMrcuGYG4GY/s400/final1.jpg" width="400" /></a></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-63842238787997219522010-10-02T12:51:00.001+05:302010-10-02T13:05:42.074+05:30लो आ गए अमन पर दाग लगाने वाले<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKbdcAVb6mI/AAAAAAAAAS0/jqRm5JcY9fk/s1600/Mulayam-Yadav.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" px="true" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKbdcAVb6mI/AAAAAAAAAS0/jqRm5JcY9fk/s320/Mulayam-Yadav.jpg" width="320" /></a></div>मुल्ला मुलायम को अपने वोट बैंक की चिंता है, इसलिए उन्होंने अयोध्या पर आए फैसले को एक ही झटके में मुस्लिम समुदाय के साथ ठगी करार दे दिया। यह कहने से भी नहीं चूके कि फैसले में आस्था को कानून व साक्ष्यों से ऊपर रखा गया है। अंगुलियों पर गिने जाने लायक कुछ फिरकापरस्त लोगों ने भी उनके सुर में सुर मिलाया है। सुलह और सदभाव के राह में कांटे बोने का काम करने वाले इन लोगों को लगता है देश का अमन रास नहीं आ रहा। आस्था का आधार ही विश्वास है। आस्था और विश्वास एक दिन में पैदा नहीं होता। बरसों-बरस की तपस्या इसके पीछे होती है। यदि रामलला हिन्दुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं, तो इसमें हर्ज ही क्या है। तीस सितम्बर को फैसले के दिन करोड़ों भारतीयों ने जिस संयम और सदभावना का परिचय दिया है, उससे पूरी दुनिया आश्चर्यचकित है। आस्था पर सवाल उठाने वाले यह लोग भलीभांति जानते हैं कि समाज में उनकी पहचान भी एक विश्वास पर ही टिकी है। माँ ने बता दिया कि फलां तुम्हारा पिता है, तो आपने मान लिया और पिता का नाम स्वीकार भी कर लिया। जो लोग रामलला की आस्था और विश्वास पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, हो सकता है यही लोग कल अपनी माँ से भी अपने पिता की असली पहचान पूछ सकते हैं। कुरान, बाइबिल और गुरुग्रंथ साहिब भी किसी आस्था का ही परिणाम है। यदि रामलला नहीं है, तो कुरान, गुरुग्रंथ साहिब और बाइबिल भी नहीं है। नेक सलाह यही है कि न्यायपालिका को अपना काम करने दें और अमन की राह को बेवजह की जुगाली से गंदा न करें।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-3410089037077669252010-09-30T13:41:00.001+05:302010-09-30T13:43:15.111+05:30इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारासारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा<br />
हम बुलबुले हैं इसकी,वो गुलिस्तां हमारा<br />
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परबत वो सबसे ऊँचा, ...हमसाया आसमां का<br />
वो संतरी हमारा, वो पासबां हमारा<br />
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गोदी में खेलती हैं, जिसके हज़ारों नदियाँ<br />
गुलशन है जिसके दम से, रश्क–ए–जिनां हमारा<br />
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मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना<br />
हिन्दी हैं हम, वतन है, हिन्दोस्तां हमारा<br />
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<strong>हिन्दुस्तान का एक विनम्र प्रयास, अमन की राह पर</strong><br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRC0uHXl3I/AAAAAAAAASk/1K8dg4orW10/s1600/central+spread.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="298" px="true" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRC0uHXl3I/AAAAAAAAASk/1K8dg4orW10/s400/central+spread.jpg" width="400" /></a><br />
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<strong>आओ उड़ाएं अमन के प्रतीक कबूतर</strong><br />
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRD4YnpH4I/AAAAAAAAASo/Iwqk9rJSwJ0/s1600/DSC_3739.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" px="true" src="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRD4YnpH4I/AAAAAAAAASo/Iwqk9rJSwJ0/s200/DSC_3739.JPG" width="132" /></a></div> <a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRE5LdL5UI/AAAAAAAAASs/3lQnZcJI_KQ/s1600/DSC_3741.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="133" px="true" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRE5LdL5UI/AAAAAAAAASs/3lQnZcJI_KQ/s200/DSC_3741.JPG" width="200" /></a><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRFOt3Z8II/AAAAAAAAASw/zhHQjrQNkMo/s1600/DSC_3742.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="133" px="true" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TKRFOt3Z8II/AAAAAAAAASw/zhHQjrQNkMo/s200/DSC_3742.JPG" width="200" /></a>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-81984931321063564522010-06-21T13:35:00.003+05:302010-06-21T18:26:26.363+05:30बाबा रामदेव आप तो ऐसे ना थे...?<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">बाबाओं में अपनेराम का कोई विश्वास नहीं है। अपवादस्वरूप एकाध बाबा को छोड़ दिया जाए तो प्रवचन में बड़ी-बड़ी बातें और दावे करने वाले बाबाओं की दुकान उनके साथ चलती है। कोई मंजन-दातून, घी-तेल और खास तरह की दवाइयां बेचता है, तो कोई फोटो-पोस्टर्स, किताबें, कैसेट्स-सीडी की आड़ में धन कमाता है। तीन साल पहले हरिद्वार स्थित बाबा रामदेव के योग साम्राज्य के मुख्यालय पतंजलि योग संस्थान जाने का अवसर मिला। वहां की आबोहवा, सात्विक माहौल देखकर लगा कि और बाबाओं से हटकर हैं बाबा रामदेव। दवाइयां, खानपान सब कुछ किफायती। हर आगंतुक के साथ मेहमान-सा व्यवहार और पूरा आदर-सत्कार।</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TB8dDSN73MI/AAAAAAAAASU/Uo-OVeTmP1Y/s1600/ram.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" ru="true" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TB8dDSN73MI/AAAAAAAAASU/Uo-OVeTmP1Y/s320/ram.jpg" /></a>पिछले सप्ताह जाना हुआ तो पतंजलि योग संस्थान का पूरा निजाम ही बदला-बदला नजर आया। गेट पर ही प्रत्येक गाड़ी से एंट्री शुल्क वसूला जाने लगा है। सेहत की दुश्मन जिन चीजों से बचने की सलाह बाबा अपनी योग सभाओं में दिया करते हैं वह सब बाबा के योग अस्पताल में सहज उपलब्ध है। गोलगप्पे, चाट-पकोड़ी के साथ मिठाई आदि का आप भरपूर आनंद ले सकते हैं। पैकिंग मटैरियल की बात करें तो दवाइयों के साथ-साथ मिठाई-नमकीन की भी बिक्री अब होने लगी है। पहले की तुलना में दवाइयां भी अब कई गुना महंगी हो गई है। हो सकता है खर्चे-पानी निकालने को बाबा के लिए यह सब जरुरी हो गया हो, मगर पहले तो बाबा कहा करते थे कि संस्थान में सब कुछ नो प्रोफिट-नो लॉस पर मिलेगा। अब ऐसा क्या हुआ कि बाबा ने हर चीज को ठेके पर उठा दिया। और जब कोई ठेका लेता है तो उसकी मानसिकता सिर्फ और सिर्फ लाभ कमाने की ही होती है। यहां बता दें कि पहले जैसा स्वागत-सत्कार भी दूर-दूर तक नजर नहीं आया। जिन बाहरी लोगों को सुरक्षा की कमान सौंपी गई है, वो भी आगंतुकों के साथ ठीक से पेश नहीं आते। नित नए बयानों के कारण चर्चाओं में रहने वाले बाबा के योग शिविर वैसे ही अधिक शुल्क होने के कारण आमलोगों की पहुंच से दूर ही होते हैं। बढ़ती महंगाई के चलते योग अस्पताल भी लोगों से दूर हो सकता है। अपनेराम की बाबा रामदेव में कोई आस्था नहीं लेकिन उनकी कुछ चीजों को पसंद जरूर करते हैं। नहीं मालूम कि बाबा तक संस्थान में आने वालों की भावनाएं पहुंच पाती हैं अथवा नहीं, मगर इतना तय है कि वक्त की नब्ज को सही से नहीं पकड़ा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग कहने लगेंगे- <strong>एक थे बाबा रामदेव।</strong></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-83739389264092500132010-06-18T13:29:00.003+05:302010-06-18T13:56:40.892+05:30जय बोलो बाबा केदारनाथ और बद्री विशाल की<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TBsnDc1KCfI/AAAAAAAAAR8/bP9p7jgBVBc/s1600/IMG_0180.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" qu="true" src="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TBsnDc1KCfI/AAAAAAAAAR8/bP9p7jgBVBc/s400/IMG_0180.JPG" width="300" /></a></div><br />
वक्त का पता नहीं पर आंखों में अब भी धुंधली तस्वीर बाकी है। अपनेराम दस या बारह साल के रहे होंगे। खबर आई कि गांव के कुछ बड़े-बुजुर्ग चार धाम की यात्रा पर जा रहे हैं, उन्हें विदाई देने आ जाओ। पुण्य मिलेगा। छोटी बुद्धि, ज्यादा कुछ नहीं समझ पाई। बाबा की अंगुली थामी। ऊंची-नीची पगडंडियां और दगरे पार करते हुए पहुंच गए अपने गांव। मंदिर पर उत्सव-सा माहौल। फूलमालाओं से लदे दो दर्जन से अधिक महिला-पुरुषों की टोली, ग्रामीणों की नजरों का नूर थी। गाजे-बाजे के साथ गांव के बाहर तक टोली को विदाई दी गई। विदाई का वह सीन आज भी जहन में ताजा है। हर कोई गले मिल रहा था। फूट-फूटकर रो रहा था। शायद इस आशंका में जाने वाले से फिर कभी मुलाकात होगी भी या नहीं? खैर सभी लगभग चार महीने बाद सकुशल लौटे।<br />
<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TBsotrNZjxI/AAAAAAAAASE/3fRFaEwQ_iQ/s1600/IMG_0119.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" qu="true" src="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/TBsotrNZjxI/AAAAAAAAASE/3fRFaEwQ_iQ/s320/IMG_0119.JPG" /></a></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">यह वाकया बताने का मकसद महज इतना था कि नौ जून को अपनेराम भी अपने परिवार के साथ इन चार में से दो धाम (केदारनाथ व बद्रीनाथ) की यात्रा पर निकले और १५ जून को लौट भी आए। बाबा केदारनाथ ने अपनेराम की जमकर परीक्षा ली। बहुत गुमान था अपने राम को अपने पर। यह कहने से भी कभी नहीं चूके कि गांव का घी-दूध पिया है, कोसों दूर तक तो यूं ही भागकर चले जाया करते थे। माँ वैष्णोदेवी के दरबार में हर साल हाजिरी लगाने का दस्तूर पिछले डेढ़ दशक से निभाया है, यही सोचकर अनुमान लगा लिया था कि बाबा केदारनाथ की चौदह किमी की चढ़ाई आसानी से पार कर जाएंगे। कीचड़-पानी से भरी उबड़-खाबड़ चढ़ाई को अगल-बगल से टकराकर गुजरते खच्चरों के काफिले कुछ ज्यादा ही दुष्कर बनाते रहे। गिरते-पड़ते, हांफते-बैठते दस किमी का सफर तय कर लिया लेकिन उसके बाद शरीर जवाब दे गया। हर कदम किलोमीटर-सा भारी लगने लगा। खच्चरों का सहारा लेकर बाबा के दरबार तक पहुंचे। यहां बता दें मेरा बेटा दक्षप्रताप (१०) और दीक्षा सिंह (०९) अपनी दादी(५५) का सहारा बने और उनकी अंगुली पकड़कर बिना किसी बाधा के पैदल ही बाबा के दरबार तक पहुंचे।</div>मंदिर के चारो ओर पहाड़ की चोटियों पर बिछी बर्फ की सफेद चादर और रिमझिम बरसात तन-मन को निरंतर शीतल करती रहीं। वैभवशाली मंदिर में पूरे सुकून और इत्मीनान के साथ जब बाबा केदारनाथ का साक्षात्कार हुआ, तो दिल बाग-बाग हो गया। थकान भी छूमंतर हो गई।लौटते समय अपनेराम ने घोड़ों पर ही सवारी करने में भलाई समझी, मगर यह राह भी आसान नहीं रही। कष्ट हर पल परीक्षा लेते नजर आए। कई बार घोड़ा फिसला, तो कई बार गहरी खाइयों के किनारे चलते घोड़े के गिरने की आशंका ने डरा दिया। अंधेरे रास्ते में निरीह जानवरों की पीठ पर सवारी गांठने का विकल्प अपनेराम ने खुद ही चुना था इसलिए कुछ कहना भी ठीक नहीं है।<br />
<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">हमारा अगला पड़ाव रहा बद्री विशाल का दरबार। आकाश चूमती पहाड़ी चोटियां और आसपास से गुजरने का अहसास कराते आवारा बादल सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं, तो प्राचीन मंदिर की सुंदरता हर किसी को सम्मोहित कर लेती है। प्रकृति का खेल देखिए, एक ओर कल-कल बहती अलकनंदा का शीतल जल अंगुलियों में सिहरन पैदा करता है तो दूसरी ओर उसके ठीक बगल में मौजूद गरम कुण्ड का पानी दर्शनार्थियों को उल्लासित करता है। दोनों ही धाम की महिमा व प्राकृतिक सौंदर्य इतना विराट और वैभवशाली है कि पूरी किताब बड़ी सहजता से लिखी जा सकती है। बचपन की उस तस्वीर से जब आज के सफर के तुलना करता हूं तो लगता कि वाकई उस जमाने में केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन कितने दुष्कर व कठिन रहे होंगे। शायद तभी बड़े-बुजुर्ग अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से फारिग होने के बाद चार धाम की यात्रा के बारे में सोचते थे और जाते समय विदाई भी इसी अंदाज में दी जाती थी कि दर्शन करके लौट आए तो भगवान की कृपा, वरना रास्ते में कुछ हो गया तो मोक्ष की प्राप्ति।</div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-24975230561747245482010-03-07T21:50:00.006+05:302010-03-08T12:20:18.345+05:30बेटियाँ होती ही ऐसी हैं<div style="text-align: left;"></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; text-align: left;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S5PRfGnwu7I/AAAAAAAAARQ/4vbuV7ppojw/s1600-h/12.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" kt="true" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S5PRfGnwu7I/AAAAAAAAARQ/4vbuV7ppojw/s320/12.jpg" width="90" /></a>आज भी वो दिन याद करता हूं खुद पर हँसी आने लगती है। सोचना हूं वो भी क्या दिन थे। मेरी छोटी सी मासूम रिया। बमुश्किल तीन-चार माह की रही होगी। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ जाती। ऐसा लगता कि वो मुझसे कुछ कहना चाहती है। दिल-दिमाग को समझाता, अभी वो बहुत छोटी है। किसी को क्या पहचानेगी। मेरी नौकरी की नाव मेरे घर से सवा सौ किमी दूर यमुना किनारे पहुंच गई, मगर हर समय बिटिया का चेहरा ही मेरी आँखों में होता। बिटिया की मुस्कुराहट के प्रति यह मेरा पागलपन ही था कि कई बार जान हथेली पर रखकर भागते-दौड़ते ट्रेन पकड़ी तो कभी सौ किमी की रफ्तार से बाइक को हाइवे पर दौड़ा दिया। जब भी घर पहुंचा वो सोती मिली। फिर भी मुझे लगता कि वो मुझे देखकर मुस्कुरा रही है। अब रिया दस साल की हो गई है लेकिन उसकी वो मुस्कुराहट आज भी मेरे दिल पर गहरे चस्पा है। वाकई बेटियाँ होती ही ऐसी हैं?</div><div style="text-align: left;"><br />
<strong><span style="color: magenta; font-size: large;">अजहर हाशमी की रचना- बेटियाँ पावन दुआएँ हैं</span></strong> </div><div style="text-align: left;">बेटियाँ शुभकामनाएँ हैं, बेटियाँ पावन दुआएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">बेटियाँ जीनत हदीसों की, बेटियाँ जातक कथाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">बेटियाँ गुरुग्रंथ की वाणी, बेटियाँ वैदिक ऋचाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">जिनमें खुद भगवान बसता है, बेटियाँ वे वन्दनाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">त्याग, तप, गुणधर्म, साहस की बेटियाँ गौरव कथाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">मुस्कुरा के पीर पीती हैं, बेटी हर्षित व्यथाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">लू-लपट को दूर करती हैं, बेटियाँ जल की घटाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">दुर्दिनों के दौर में देखा, बेटियाँ संवेदनाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;">गर्म झोंके बने रहे बेटे, बेटियाँ ठण्डी हवाएँ हैं।</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="color: magenta; font-size: large;"><strong>निर्मला जोशी की बेटियाँ</strong></span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">दो कुल की लाज लेकर पलती हैं बेटियाँ</div><div style="text-align: left;">फिर क्यों किसी की आँख में खलती हैं बेटियाँ</div><div style="text-align: left;">गहराइयों से गहरी, हैं ईश्वरीय कृतियाँ, घर-घर की आबरू हैं</div><div style="text-align: left;">घर की ज्योतियाँ, हर द्वार देहरी की इज़्जत हैं बेटियाँ</div><div style="text-align: left;">झरनों सी झरझराती, कोयल सी कुहुकती हैं</div><div style="text-align: left;">उपवन की डालियों सी, ऋतुओं में महकती हैं</div><div style="text-align: left;">फूलों से मुस्कुराती मकरंद बेटियाँ</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">हिमगिरि सा ऊँचा मस्तक, विनम्र विंध्य सी</div><div style="text-align: left;">भारत सा मन विशाल है, दानी दधीचि सी</div><div style="text-align: left;">कितनी सुघड़ सलोनी भोली हैं बेटियाँ</div><div style="text-align: left;">मंदिर की घंटियों सी, मस्जिद की हैं अज़ान</div><div style="text-align: left;">गुरूग्रंथ जैसी पावन, गीता हैं और कुरान</div><div style="text-align: left;">धर्मों की हैं आवाज़ तो हैं धर्म बेटियाँ</div><div style="text-align: left;">नदियों सी दिशाओं में, बढ़ती ही जा रही</div><div style="text-align: left;">राहों में पत्थरों से, लड़ती ही जा रही</div><div style="text-align: left;">सागर को सौंप जीवन खो जाती बेटियाँ</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="color: magenta; font-size: large;">ऋतु गोयल की बेटियों से जिंदगी सावन</span></div><div style="text-align: left;"></div><div style="text-align: left;">बेटियाँ गुलज़ार होती हैं, बेटियाँ बस प्यार होती हैं</div><div style="text-align: left;">बेटियाँ घर छोड़ जाती जब, खुशियॉ सब उस पार होती हैं</div><div style="text-align: left;">बेटियों से हर घड़ी पावन, बेटियों से ज़िन्दगी सावन</div><div style="text-align: left;">बेटियों के सुर ही तन-मन में, प्राण बन के बसे होते हैं</div><div style="text-align: left;">बेटियाँ घर-घर की वीणाएँ, तार जिनके कसे होते हैं</div><div style="text-align: left;">गूँजती फिर भी मधुरता बन, बेटियाँ संगीत मनभावन</div><div style="text-align: left;">बेटियों से ज़िन्दगी सावन</div><div style="text-align: left;">धूप से हरदम बचाएँ जो, बेटियाँ वो छाँव होती हैं</div><div style="text-align: left;">झूमते दिन रात पेड़ों के, नृत्य करते पाँव होती हैं</div><div style="text-align: left;">बेटियों से महकता उपवन, बेटियों से घर हैं वृंदावन</div><div style="text-align: left;">बेटियों से ज़िन्दगी सावन</div><div style="text-align: left;">बेटियाँ जब जन्म लेती हैं, जन्म दे क्यूं माएं रोती हैं</div><div style="text-align: left;">बेटियों को कोख में मारे, बेटियों से दुनिया होती हैं</div><div style="text-align: left;">रुक गई जो इनकी ही धड़कन, रच सकोगे क्या धरा नूतन</div><div style="text-align: left;">बेटियों से ज़िन्दगी सावन</div><div style="text-align: left;">देह धर कर आ गया है जो, बेटी नयनों का वहीं सपना<br />
सपना वो जो सबसे अपना है, फिर भी वो होता नहीं अपना</div><div style="text-align: left;">छोड़ जाती खुशबू तन-मन की, बेटियाँ हैं या हैं ये चन्दन</div><div style="text-align: left;">बेटियों से ज़िन्दगी सावन</div><div style="text-align: left;">बेटियाँ मधुमास होती हैं, दूर हो के पास होती हैं</div><div style="text-align: left;">बेटे घर के दीप हैं माना, बेटियाँ अरदास होती हैं</div><div style="text-align: left;">जो सदा करती जहां रोशन, बेटियाँ हैं भोर का वंदन</div><div style="text-align: left;">बेटियों से ज़िन्दगी सावन</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><strong><span style="font-size: large;">.<span style="color: magenta;">और अंत में मंजर भोपाली</span></span></strong> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">'बेटियों के लिए हाथ उठाओ मंजर, </span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;">सिर्फ अल्लाह से बेटा नहीं मांगा करते।</span> </div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-38111205002576759822010-02-25T18:10:00.007+05:302010-02-25T19:09:31.089+05:30सचिन, सचिन और सचिन<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4ZrLc5nheI/AAAAAAAAAQg/T3DV3kdU-nQ/s1600-h/2522010-nai-gwl-01l.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" kt="true" src="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4ZrLc5nheI/AAAAAAAAAQg/T3DV3kdU-nQ/s200/2522010-nai-gwl-01l.jpg" width="126" /></a><a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4Zq6VTJMVI/AAAAAAAAAQY/J2VPSR6YY2o/s1600-h/hindus.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="185" kt="true" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4Zq6VTJMVI/AAAAAAAAAQY/J2VPSR6YY2o/s200/hindus.jpg" width="200" /></a></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div><div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4ZuJ1q75VI/AAAAAAAAARA/ZQe1n8Yjagw/s1600-h/2522010-md-hr-1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" kt="true" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4ZuJ1q75VI/AAAAAAAAARA/ZQe1n8Yjagw/s200/2522010-md-hr-1.jpg" width="123" /></a><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4Zr77SMhGI/AAAAAAAAAQo/7LiZ7Q6aTXc/s1600-h/IND_PRAHS.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; cssfloat: right; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" kt="true" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4Zr77SMhGI/AAAAAAAAAQo/7LiZ7Q6aTXc/s200/IND_PRAHS.jpg" width="135" /></a><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4ZsjryD5eI/AAAAAAAAAQw/E24OfzDDV5I/s1600/sachin1+copy.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" kt="true" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4ZsjryD5eI/AAAAAAAAAQw/E24OfzDDV5I/s200/sachin1+copy.jpg" width="127" /></a></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">सचिन के बल्ले से ग्वालियर के कैप्टन रूपसिंह स्टेडियम पर निकली ऐतिहासिक पारी को कवर करने में मीडिया भी पीछे नहीं रहा। पाठकों तक सचिन का यश पहुंचाने के लिए हिन्दी और मराठी के समाचार पत्रों ने कुछ अलग अंदाज में लीक से हटकर करने का प्रयास किया। </div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"> </div></div></div></div></div></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-31484160079688456422010-02-24T21:56:00.001+05:302010-02-24T22:34:20.044+05:30सलाम सचिन रिकॉर्ड तेंदुलकर<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4VSnyCHPdI/AAAAAAAAAQQ/HDXquuiwddk/s1600-h/111.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="297" kt="true" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4VSnyCHPdI/AAAAAAAAAQQ/HDXquuiwddk/s400/111.jpg" width="400" /></a></div><br />
संगीत सम्राट तानसेन जब स्वर साधना करते थे तो रागों से दीपक जला दिया करते थे। उसी नगरी में आज सचिन तेंदुलकर ने ऐतिहासिक पारी खेलकर दिखा दिया कि उनकी क्रिकेट साधना का तप किसी भी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर सकता है। सचिन को ग्वालियर का कैप्टन रुपसिंह स्टेडियम हमेशा ही भाया है लेकिन २४ फरवरी २०१० को उनके बल्ले से निकला करिश्मा तरुणाई के दिल-ओ-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गया।<br />
<br />
स्टेडियम में मौजूद हजारों दर्शकों के लिए सचिन की पारी किसी सपने से कम नहीं थी। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। हर चौके-छक्के पर वाह-वाह करते दर्शकों को अहसास ही नहीं हुआ कि क्रिकेट का यह जादूगर बॉल-दर-बॉल कब एक ऐसे रिकॉर्ड को छू गया, जो हर बल्लेबाज का सपना होता है। अब जब भी सचिन की इस महान पारी का जिक्र होगा तब इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने हजारों दर्शक अपनी भावी पीढ़ी को फक्र के साथ साझा किया करेंगे। सचिन ने ग्वालियर में अपना पहला वन डे २१ मार्च १९९१ को दक्षिण अफ्रीका के ही खिलाफ खेला। इस मैच में वे कुछ खास नहीं कर पाए और मात्र चार रन के निजी स्कोर पर पवैलियन लौट गए, किन्तु उसके बाद खेले गए आठ मैचों में उनके बल्ले की धुन पर क्रिकेट प्रेमी जमकर नाचे। यहां खेले नौ मैचों में सचिन ने ६६.१२ के औसत से दो शतक व दो अर्धशतक की मदद से ५२९ रन बनाए हैं। एक दिवसीय क्रिकेट में बल्लेबाजी के अधिकांश रिकॉर्ड सचिन के ही नाम है। आज दोहरे शतक का कीर्तिमान बनाकर सचिन ने अपने साथ ग्वालियर का नाम भी सबसे आगे और सबसे ऊपर दर्ज करा दिया। शायद किसी शहर से अपने भावनात्मक लगाव का इजहार करने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं हो सकता। <br />
सचिन वाकई बहुत अच्छा खेले। कोई उन्हें क्रिकेट का देवता कह रहा है, तो कोई उन्हें देश का लाड़ला। लेकिन अपने समय के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर का कहना कि मैं सचिन तेंदुलकर के पैर छून चाहता हूं, वाकई सचिन की महानता को प्रतिबिंबित करता है। उनकी महानता देखिए, मैन आफ दि मैच का पुरस्कार ग्रहण करते समय उन्होंने कहा- मेरी दो सौ रन की यह पारी देश को समर्पित है, भारतवासियों को समर्पित हैं। कैरियर में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन लोगों ने मुझे पलकों पर बैठाए रखा।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-59512909149483289072010-02-22T17:59:00.001+05:302010-02-22T18:03:34.953+05:30आओ फिर लहराएं तिरंगा प्यारा<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: left;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4J3Qi4VkdI/AAAAAAAAAQA/mfSjZ3EwjcM/s1600-h/match.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" ct="true" height="320" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S4J3Qi4VkdI/AAAAAAAAAQA/mfSjZ3EwjcM/s320/match.jpg" width="256" /></a>दिल और दिमाग में जंग चल रही है। कौन जीतेगा कौन हारेगा, कुछ भी कहना मुश्किल है। दिल जज्बाती हो रहा है। अपने यारों के फोन इन जज्बातों को और हवा दे रहे हैं। जज्बातों का ज्वार यूं ही नहीं उठ रहा। क्योंकि जज्बातों के केंद्र में वो कैप्टन रूपसिंह स्टेडियम है, जिसके मिट्टी-कंकड़ वाले मैदान को समय के साथ हरीतिमा की मखमली चादर ओढ़ते और दूधिया रोशनी में नहाते देखा है। हजारों लोगों की भीड़ में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को चौके-छक्के और गिल्लियां उड़ाते देखा है। २२ जनवरी १९८८ (भारत-वेस्टइंडीज) से लेकर १५ नवंबर २००७ (भारत-पाक) तक ११ वनडे इंटरनेशनल मैचों से सीधा जुड़ाव रहा और अब २४ फरवरी २०१० को बारहवां मैच भारत-दक्षिण अफ्रीका के बीच होने जा रहा है। ऐसे में यार भला अपनेराम को कैसे भूल सकते हैं। यहां बता दें कि ग्वालियर में हुए ११ में से सात मैचों में भारत की विजय पताका लहराई है और पिछले तीन वन डे मैचों से यहां जीत का सिलसिला जारी है। धोनी की युवा टीम जिस अंदाज में प्रतिद्वंद्वियों को धुन रही है, उसने चौथी जीत की आशाओं को भी पंख लगा दिए हैं। </div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-16978817416840917002010-02-19T01:42:00.002+05:302010-02-19T01:53:04.827+05:30कहां गई बचपन की वो बातें...?<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><strong>बच्चे को बच्चा ही रहने दो, दो-चार किताबें पढ़ लेगा तो हम जैसा हो जाएगा...। याद करो वो दिन जब अपनेपन की आबोहवा में कुछ बातें, कुछ किस्से छुटपन को सहलाया करते थे। चार दिन पहले ही किसी ने धुंधली यादों से पर्दा उठाया और सवाल किया कि क्या आपको याद है-</strong></div></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S32gxuyDZLI/AAAAAAAAAP4/GtcB1NomJhg/s1600-h/strawberryshortcake1.jpg" imageanchor="1" style="cssfloat: left; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" ct="true" height="241" src="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/S32gxuyDZLI/AAAAAAAAAP4/GtcB1NomJhg/s400/strawberryshortcake1.jpg" width="400" /></a></div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div><br />
<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><strong>(१)</strong> मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">हाथ लगाओ डर जाएगी, बाहर निकालो मर जाएगी।</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><strong>(२)</strong> पोशम पा भई पोशम पा, सौ रुपये की घड़ी चुराई</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><br />
</div>अब तो जेल में आना पड़ेगा, जेल की रोटी खाना पड़ेगी<br />
<br />
जेल का पानी पीना पड़ेगा, थाई-थईया-ठुस्स, मदारी बाबा फुस्स।<br />
<br />
<strong>(३)</strong> झूठ बोलना पाप है नदी किनारे सांप है,<br />
<br />
काली माई आएगी तुमको उठा ले जाएगी।<br />
<br />
<strong>(४)</strong> आज सोमवार है, चूहे को बुखार है<br />
<br />
चूहा गया डॉक्टर के पास, डॉक्टर ने लगाई सुईं<br />
<br />
चूहा बोला-उई..उई..उई..।<br />
<br />
<strong>(५)</strong> आलू कचालू बेटा कहां गए थे, बंदर की झोपड़ी में सो रहे थे<br />
<br />
बंदर ने लात मारी रो रहे थे, मम्मी ने पैसा दिया हंस रहे थे।<br />
<br />
<strong>(६)</strong> तितली उड़ी बस में चढ़ी, सीट न मिली तो रोने लगी<br />
<br />
ड्राइवर बोला आजा मेरे पास, तितली बोली-हट बदमाश।<br />
<br />
<strong>(७)</strong> चंदा मामा दूर के, पुए पकाए भोर के<br />
<br />
आप खाएं थाली में, मुन्ने को दे प्याली में<br />
<br />
प्याली गई टूट, मुन्ना गया रूठ।<br />
<br />
<strong>इस विरासत का कुछ हिस्सा क्या हम कम्प्यूटर-मोबाइल फोन से संपन्न आज के बचपन को सौंप पाए हैं? शायद नहीं।</strong>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-76537497950269611582010-02-13T13:07:00.002+05:302010-02-13T13:26:26.280+05:30कहां गया मेरा वो गाँवबड़ी उलझन मैं हूं। व्यथित भी हूं। क्योंकि मेरा गाँव कहीं गुम हो गया है। वो गाँव जिसकी याद करते ही मन मयूर नाच उठता था। भला नाचता भी क्यों ना? गाँव का हर चेहरा भोला और अपनेपन से लबरेज था। पूरा गाँव प्यार का सागर नजर आता। शहर का अपनापन वाहनों के शोरगुल और धुएं में गुम-सा गया था इसलिए गाँव मन को अधिक भाता था। गांव में घर के ठीक सामने नीम के पेड़ों का झुरमुट और इनसे छनकर आने वाली शीतल बयार के आगे भीषण गर्मी की तपन भी घुटने टेक देती थी। कुछ ही फर्लांग की दूरी पर कल-कल करती क्वारी नदी बहती थी। गांव के ही कुछ कच्छा बनियानधारी दोस्तों के साथ नदी में कूद-कूदकर नहाना, तैरना और फिर घंटों नदी किनारे रेत पर लेटे रहना तन-मन को आनंदित करता था। <br />
<br />
नौकरी की भागदौड़ में मेरा अपना गाँव मुझसे लगातार दूर होता चला गया। लगभग दस साल बाद पिछले सप्ताह गाँव जाना हुआ तो वहां कुछ घंटे ठहरना भी मुश्किल हो गया। लगा ही नहीं यह वही गांव था जिसके लिए मैं हर साल गर्मियों की छुट्टियों या फिर किसी शादी समारोह का इंतजार किया करता था। क्वारी नदी अब भी अपने स्थान पर थी लेकिन पानी की तासीर बदल चुकी थी। पानी चुगली कर रहा था कि क्वारी नदी किसी शहर के गंदे नाले से मिलकर आई है। घर के बाहर नीमों के झुरमुट का आकार भी घटकर एक चौथाई रह गया था। पहले की तरह बिजली अब भी महीनों में यदाकदा ही आती थी और सड़क देखकर यह अंदाज लगाना मुश्किल था कि सड़क पर गड्ढे हैं या गड्ढे में सड़क। <br />
<br />
गांव जाना यूं ही नहीं हुआ था। एक सगाई समारोह था। रात्रि दस बजे तक सब कुछ सामान्य था लेकिन जैसे ही सगाई की रस्म पूरी हुई, गांव के 30-४0 छोरों ने अपनी पतलूनों के दाएं-बाएं लगाकर रखे देसी कट्टे (तमंचे) निकाले और दोनों हाथों में लेकर हवा में लहरा दिए। देखते ही देखते तड़ातड़ फायर होने लगे। सुंदर सा नजर आने वाला शामियाना फायरिंग रेंज में लगे बोर्ड में तब्दील हो गया। यह नजारा देखकर मैं सहम गया, इस डर से कि कहीं कोई गोली मेरी ओर न आ जाए। आखिर गोली को तो नहीं पता कि कौन अपना है और कौन पराया। चंबल के बीहड़ों में जब खूंखार डकैतों की सल्तनत चला करती थी, तब भी हालात ऐसे नहीं थे। परिवार के छोटे-बड़ों का गुजारा खेती-किसानी से चल जाता था। इस वाकये ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया। ये हालात क्यों और कैसे बने, यह लंबी कहानी है। फिर भी यदि आपको मेरा प्यार गाँव मिल जाए, तो मुझे बताभर देना। मैं बचपन की तरह घुटनों के बल चलकर पहुंच जाऊंगा?Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-88138931536262803582009-11-16T17:12:00.002+05:302009-11-17T17:58:03.404+05:30सचिन वाकई तुम महान हो..<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SwKWuwejXuI/AAAAAAAAAPw/67dQ3qgS1zQ/s1600/sac.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SwKWuwejXuI/AAAAAAAAAPw/67dQ3qgS1zQ/s320/sac.jpg" yr="true" /></a><br />
</div>सचिन तेंदुलकर जितने महान बल्लेबाज हैं, उतने ही अच्छे इंसान भी। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तीस हजार रनों की दहलीज पर खड़े सचिन का यह कहना कि वे पहले भारतीय हैं और मुंबई सबके लिए है, उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कथित महाराष्ट्रीयन हितों की आड़ में आए दिन विषवमन करते हैं। महाराष्ट्र का जो परिवार ऐसे कृत्यों में संलग्न है उसका मुखिया सठिया चुका है और उनका भतीजा देश के किसी भी पागलखाने के लिए उपयुक्त केस है। <br />
अलबत्ता तो सचिन जैसे खिलाड़ी क्षेत्रवाद, जातिवाद जैसी बुराइयों से कोसों दूर हैं, फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि सचिन सिर्फ सचिन इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने देश की टीम से, भारत की टीम से क्रिकेट खेला। सोचो यदि सचिन किसी शारदाश्रम, मुम्बई या फिर महाराष्ट्र की टीम से ही क्रिकेट खेल रहे होते तो क्या उनका कद इतना ऊंचा होता? शायद नहीं। <br />
अब आते हैं उस परिवार पर जो महाराष्ट्र के लोगों को अपने ही विचारों से हांकना चाहते हैं। आप गली के कुत्ते के बारे में तो जानते ही होंगे। जब वह अपनी गली में होता है तो बहुत गरियाता है लेकिन जब दूसरी गली में जाता है तो दुम हिलाने लगता है। कमोवेश यही स्थिति इन लोगों की भी है। महाराष्ट्र के बाहर इन लोगों का कोई अस्तित्व नहीं है और महाराष्ट्र के भीतर भी इनके हाल बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना से ज्यादा नहीं है। आज भी उनकी पार्टी की स्थिति एक छोटे क्षेत्रीय दल की ही है। इन कूपमंडुकों को अपनी नेक सलाह तो यही है कि समय रहते सुधर जाओ, वरना आने वाली पीढ़ी याद करने लायक भी नहीं समझेगी।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-19651234640600298382009-11-14T20:53:00.001+05:302009-11-14T20:54:36.391+05:30कोई तो समझाए इस पागल को<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/Sv7KG6709RI/AAAAAAAAAPI/5_SXnsrIoRU/s1600-h/raj_thakrey14Nov1258204150_storyimage.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" sr="true" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/Sv7KG6709RI/AAAAAAAAAPI/5_SXnsrIoRU/s200/raj_thakrey14Nov1258204150_storyimage.jpg" /></a><br />
</div>पागलपन की भी कोई हद होती है लेकिन महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) के मुखिया राजठाकरे की करतूतें रुकने का नाम नहीं ले रही। चर्चाओं में बने रहने के लिए हर रोज कोई न कोई नया फरमान जारी कर देते हैं। अब राज ठाकरे चाहते हैं कि एसबीआई की भर्ती में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाए। इसके लिए मनसे ने एसबीआई प्रशासन को एक पत्र भी लिखा है। एसबीआई रविवार को यह चयन परीक्षा आयोजित कर रहा है। विघ्नसंतोषी मनसे की यह मांग सहज नहीं है, क्योंकि पिछले साल रेलवे बोर्ड परीक्षा के दौरान भी इसी तरह की मांग उठाई थी जिसने हिंसक रूप धारण कर लिया था। मनसे के कार्यकर्ताओं ने उपनगर मुंबई के 17 परीक्षा केंद्रों पर हमला किया था और उत्तर भारत के परीक्षार्थियों से मारपीट की थी।<br />
किसी पागल हाथी को बेलगाम छोड़ दिया जाए तो वह लगातार किसी न किसी का नुक्सान करता रहता है। राज ठाकरे की स्थिति भी महाराष्ट्र में कुछ ऐसी ही हो गई है। यदि समय रहते उस पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब वह महाराष्ट्र के लिए अलग से हवा-पानी की भी डिमांड कर बैठे।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-72355893610439291672009-10-24T18:03:00.001+05:302009-10-24T18:09:25.714+05:30अजय, तुसी तो छा गए यार..<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SuL1Up2IdmI/AAAAAAAAAN4/pwCqqItzLos/s1600-h/Picture+068.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SuL1Up2IdmI/AAAAAAAAAN4/pwCqqItzLos/s320/Picture%2B068.jpg" vr="true" /></a><br />
</div><div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;">आपको पता ही है कि पंजाब की माटी के पुत्तर <a href="mailto:betterperson@gmail.com">अजय गर्ग</a> ने छह नवंबर 2009 को रिलीज होने वाली मधुर भंडारकर की फिल्म जेल में दाता सुन, मौला सुन.. गीत लिखा है। इस गीत को स्वर दिए हैं स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने। किसी भी युवा गीतकार के लिए इससे ज्यादा गौरव की बात क्या हो सकती है कि उसके जीवन के पहले फिल्मी गीत को स्वर कोकिला ने गाया हो। इस गाने के साथ एक और गौरव जुड़ गया है। दिल्ली के तिहाड़ जेल प्रबंधन ने इस गीत को अपनी सुबह की प्रार्थना में इसे शामिल कर लिया है। यह प्रार्थना गीत है और वर्ष १९५७ में वी.शांताराम की फिल्म दो आंखें बारह हाथ के चर्चित प्रार्थना गीत ऐ मालिक तेरे बंदे हम के स्तर का है। मधुर भंडारकर इस गीत की सफलता को लेकर उत्साहित है। उनका मानना है कि यह गीत नए जमाने का ऐ मालिक तेरे बंदे हम.. साबित होगा। तो फिर देर किस बात की है कलम उठाइए या फिर माउस क्लिक कीजिए और दे डालिए युवा पत्रकार <a href="mailto:betterperson@gmail.com">अजय गर्ग</a> को बधाई।<br />
</div></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-20189371709742542482009-10-11T00:53:00.001+05:302009-10-24T17:43:36.154+05:30सुनिये, गुनिये लता की आवाज में अजय गर्ग का दाता सुन ले..मौला सुन ले<div style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none;"><a href="http://www.bemaqsad.blogspot.com/">मस्तमौला अजय।</a> बेहतरीन पत्रकार के साथ जानकार इंसान भी। जो भी करते हैं डूबकर करते हैं, दिल से करते हैं। उनकी कलम का जादू मधुर भंडारकर की आगामी फिल्म जेल में नजर आएगा। इस फिल्म में अजय के लिखे गीत दाता सुन ले...मौला सुन ले.. को वर्ष 1957 में वी.शांताराम की फिल्म 'दो आंखें बारह हाथ' में कैदियों के लिए 'ए मालिक तेरे बंदे हम..' गीत गाने वाली स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी है। इस फिल्म का गीत-संगीत पिछले दिनों रिलीज हो गया है। निर्देशक मधुर भंडारकर कहते हैं कि गीतकार अजय गर्ग के दाता सुन मौला सुन गीत की पंक्तियों को पढऩे के तुरंत बाद ही उन्होंने फैसला ले लिया था कि इसे केवल लता मंगेशकर ही गाएंगी। भंडारकर ने कहा कि गीत 'दाता सुन मौला सुन' नए जमाने का 'ए मालिक तेरे बंदे' साबित होगा। <br />
</div>आप भी इस गीत को सुन सकते हैं-Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-26070794465474732132009-04-15T22:34:00.001+05:302009-04-15T22:43:49.306+05:30कम से कम चम्बल का मान तो बढ़ारामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड की गत दिवस घोषणा हुई, तो यह जानकार सुखद आश्चर्य हुआ कि एक लाख रुपए के प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड फॉर <a href="http://www.bhadas4media.com/index.php?option=com_content&view=article&id=1344:award&catid=27:current-news&Itemid=29">हिन्दी प्रिंट कैटेगरी के अंतिम तीन नामांकन </a>में अपनेराम का भी नाम था। यह अवार्ड स्थापित पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी को मिला है लेकिन अपनेराम को इससे ही संतोष है कि कम से कम चम्बल के बीहड़ों से घिरे ग्वालियर शहर में पत्रकारिता करने वाले किसी पत्रकार के नाम पर इंडियन एक्सप्रेस समूह के इस सम्मानित पुरस्कार के लिए विचार किया गया।<br />इस खबर की जानकारी लगने के बाद कई शुभचिंतकों के संदेश दूरभाष पर मिले हैं। उन सभी मित्रों का मैं तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं। मेरा विश्वास है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। पहले प्रयास को ही इतनी ऊंचाईयां मिल गईं, चम्बल के मौड़ा के लिए तो यही पुरस्कार है। दैनिक भास्कर में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर काम करने की जो आजादी हासिल है उससे इन पुरस्कारों की राह और आसान हो जाती है, इसलिए थैंक्स टीम भास्कर। वैसे इसी साल की शुरुआत में मध्यप्रदेश सरकार की ओर से स्थापित पहला <a href="http://74.125.95.132/search?q=cache:lcmOpKPlNHwJ:bhadas.blogspot.com/2008/09/blog-post_9221.html+%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%9C+%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0+%E0%A4%95%E0%A5%8B+%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2+%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A5%80&cd=1&hl=en&ct=clnk&gl=in">रतनलाल जोशी पत्रकारिता पुरस्कार </a>अपनेराम को हासिल हुआ था। शायद अब अपनेराम की उम्र का कोई पत्रकार इस पुरस्कार को हासिल कर पाएगा, क्योंकि सरकार ने अब इसकी न्यूनतम आयुसीमा पचास साल कर दी है और अपनेराम ने तो अभी ३६ बसंत ही देखे हैं।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-5076101300544634092008-12-01T23:57:00.004+05:302008-12-02T00:23:58.312+05:30अभिषेक को कमाल तो देखो...<a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STQvJliJY2I/AAAAAAAAANI/31MW2C-7w2s/s1600-h/mumbai-1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5274892905298355042" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 199px; CURSOR: hand; HEIGHT: 298px" alt="" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STQvJliJY2I/AAAAAAAAANI/31MW2C-7w2s/s320/mumbai-1.jpg" border="0" /></a><a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STQxhuXHdjI/AAAAAAAAANQ/HNnWBgLPVtg/s1600-h/mumbai-2.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5274895519008126514" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 174px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STQxhuXHdjI/AAAAAAAAANQ/HNnWBgLPVtg/s320/mumbai-2.jpg" border="0" /></a> अरे <span class="">च<a href="http://1.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STQvI0XrGZI/AAAAAAAAANA/dE_sD3fJCfs/s1600-h/mumbai-2.jpg"></a>म्बल</span> के बीहड़न में बसे भिंड को मौड़ा है अपओ <span class=""><a href="http://kya-kahna.blogspot.com/">अभिषेक</a>।</span> कूची चलाउत-चलाउत ग्वालियर आओ और फिर वहां ते वाया इंदौर पहुंच गया जयपुर। मुंबई में आतंकी हमलों के बाद अपए अभिषेक की कूची से ऐसे जानदार-शानदार व्यंग्य निकले कि कछु पूछो मत। बिना विलंब के आपकी खिदमत में पेश है आपके मौड़ा ये कार्टून-<br />और हां जबऊ मौका मिले तबही अपए जा मौड़ा की पीठ थपथपा दिओ, काहे कि कछु दिना पहले मौड़ा काठमांडू में साउथ एशियन कार्टून कांग्रेस में हिस्सा लेके आओ है। चंबल को मौड़ा है, तो नेपाल में नाम ही करके आओ होगो। भईया अपनेराम की जानिब अबही बधाई ले लो, चंबल के दूसरे भईयन को मैसेज तुमन तक पहुंच जागो। तब तक के लाने राम-राम।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-91625836772010005752008-12-01T12:34:00.003+05:302008-12-01T13:22:40.268+05:30सिंधियाजी ने क्यों नहीं डाला वोट<a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STOOam1oggI/AAAAAAAAAM4/5U12xC0kXnw/s1600-h/sc.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 210px; height: 320px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/STOOam1oggI/AAAAAAAAAM4/5U12xC0kXnw/s320/sc.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5274716176334225922" /></a><br />ग्वालियर के जयविलास परिसर में जीवित सिंधिया राजवंश के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के कद्दावर नेता है और विधानसभा चुनाव में अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलाने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। जब अपनों को टिकट दिला ही दिया, तो उन्हें जिताने के लिए भाई ज्योतिरादित्य ने गांव-देहात की भी जमकर धूल फांकी। चुनाव किसी भी स्तर का हो एक-एक वोट मायने रखता है, इसलिए वोटों के लिए उन्होंने अंचल की हर सभा में अपने परिवार और जनता से रिश्तों की जमकर दुहाई दी। <br />दुर्भाग्य देखिए, पब्लिक को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले सिंधिया जी ने मतदान करना तक उचित नहीं समझा। अर्थात, मतदान वाले दिन न तो वे आए और न ही उनके परिवार का कोई सदस्य। इसका सीधा मतलब यह कि इस क्षेत्र के कांग्रेस उम्मीदवार के तीन सालिड वोट हाथ से निकल गए। मतदान न करने में क्या मजबूरी रही, यह तो वो ही जाने लेकिन कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि सिंधियाजी भी और नेताओं की राह पर चल पड़े हैं? यह अलहदा है कि उनकी बुआ सांसद यशोधराराजे सिंधिया ने शिवपुरी और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और राजनाथ सिंह के सलाहकार प्रभात झा ने भी ग्वालियर में आकर अपने मताधिकार का उपयोग किया। इसके विपरीत राज्यसभा सांसद माया सिंह भी इस बार वोट डालने का समय नहीं निकाल पाई।<br />वैसे ग्वालियर का चुनावी मिजाज इस बार कुछ ऐसा रहा कि कई बड़े नेता खुद के लिए भी वोट नहीं डाल पाए। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के भांजे और मप्र सरकार के मंत्री अनूप मिश्रा तथा पूर्व सांसद व बीस सूत्री क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष जयभान सिंह पवैया का परिवार ग्वालियर दक्षिण क्षेत्र में रहता है लेकिन दोनों भाजपा के टिकट पर ग्वालियर पूर्व व ग्वालियर विस क्षेत्र से चुनाव लड़े, इस कारण उन्हें व उनके परिवार को मजबूरी में दूसरे प्रत्याशी को ही वोट देना पड़ा। पूर्व मंत्री बालेंदु शुक्ल व भाराछासं की प्रदेश अध्यक्ष रश्मि शर्मा को भी इन्हीं हालात का सामना करना पड़ा।Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-14119782546329297782008-11-21T15:34:00.004+05:302008-11-21T16:55:46.663+05:30चरणभाट और कलमभाटताल-तलैया की नगरी से ग्वालियर आना हुआ, तो सोचा क्यों न सियासी हलचल की नजर की जाए। जब अपनों (अरे भाई वोई कलमघसीटू क्लर्क) के बीच पहुंचे तो अहसास हुआ कि पूरा निजाम ही बदला हुआ है। जब भी सियासी बयार चलती है, लोगों के चोले बदल जाते हैं। कुछ नेता गिरगिट की उपमा पाते हैं, तो कुछ सियार की। चुनाव के समय नेताओं को चरणभाटों की दरकार रहती है, जो उन्हें चंद पैसे या फिर स्वादिष्ट खाना या कपड़ों की कीमत पर सुलभ हो जाते हैं। चरणभाटों का दस्तूर राजा-महाराजाओं के जमाने का है और एक तरह से सियासतदारों के साथ जनता ने भी इन्हें स्वीकार कर लिया है लेकिन समाज की दशा-दिशा निर्धारित करन वाले कलमभाटों का चलन पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। सियासत में गहरी पैठ रखने वाले कलमभाटों को देश की राजधानी या किसी बड़े नगर में फ्लैट या कार की चाबी मिलने-दिलाने की चर्चाएं कलमकारों के बीच आम रही है। अब यह बीमारी छोटे शहरों तक पहुंचकर कलम को कटघरे में खड़ा कर रही है।<br />इस बार चुनाव में कोई मुद्दा या लहर लोगों के सिर चढ़कर नहीं बोल रही। नेताजी की छवि ही निर्णायक भूमिका में है, इसलिए अपनी छवि को चमकाने के लिए ग्वालियर-चम्बल संभाग में नेता कलमभाटों की खुलकर मदद ले रहे हैं। जरा गौर फरमाएं, मुरैना जिले में सत्ताधारी दल से जुड़े एक प्रत्याशी ने दर्जनभर कलमभाटों की सेवाएं ली हुई हैं और प्रत्येक कलमभाट की फीस निर्धारित की है दस हजार रुपए। भिंड जिले में भी कलमभाटों को अपने पक्ष में करने के लिए एक प्रत्याशी ने मोबाइल की बौछार-सी कर दी। कलमभाट तो कलमभाट, उनके कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों की भी लाटरी खुल गई। ऐसे ही दतिया जिले के हर प्रमुख कलमभाट के दफ्तर में एक प्रत्याशी ने मोबाइल फोन देने के साथ ही जीतने पर टूरिस्ट पैकेज का वादा किया है। जब आसपास के जिलों की यह हालत है तो ग्वालियर जिले की स्थिति का आंकलन आप खुद ही लगा सकते हैं। आपके लिए एक हिंट जरुर है-कुछ ही सालों में लाखों से अरबों तक पहुंचने वाले नेताजी ने अपने पसंदीदा कलमभाटों के लिए शराब व शबाब का इंतजाम किया है, तो हर साल धार्मिक पर्यटन कराने वाले नेताजी ने बंद लिफाफों में बहुत कुछ अपने-अपनों तक पहुंचा दिया है।<br />सब जब कुछ प्रोफेशनल है और नेताजी भी दूध के धूले नहीं है, तो कलमभाटों को भी चाटुकारिता और चापलूसी में जाया किए गए समय और प्रतिभा की कीमत मिलना चाहिए। हालांकि यह कीमत कितनी हो इसका मानक कम से कम समाज की गंदगी साफ करने का दंभ भरने वाले ऐसे कलमभाटों को अवश्य तय करना चाहिए। अपना तो यही कहना है कि आटे में नमक ठीक है लेकिन नमक में आटा नहीं चलेगा, क्योंकि यह पब्लिक है सब जानती है। और अंत में एक शायर की पंक्तियां-<br /><strong>जो उनका काम है वो अहले सियासत जाने, मेरा पैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे</strong>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-76891078771068479372008-10-23T13:05:00.003+05:302008-10-23T16:51:05.061+05:30हर डाल पर राज ठाकरे बैठा है........<a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SQArE64miUI/AAAAAAAAAMY/q15y-flDYuQ/s1600-h/Riot.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5260251728294873410" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 300px; CURSOR: hand; HEIGHT: 218px" alt="" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SQArE64miUI/AAAAAAAAAMY/q15y-flDYuQ/s320/Riot.jpg" border="0" /></a> लाख टके का एक सवाल, आखिर बिहारी ही क्यों मार खाते हैं? क्या इसके लिए राज ठाकरे ही पूरी तरह से जिम्मेदार है? इन सवालों का जवाब पाने के लिए हमें कुछ मुद्दों पर विचार करना होगा। नाम जुदा हो सकते हैं पर राज ठाकरे जैसे फितरती और राष्ट्रतोड़क तत्व देश के हर क्षेत्र या प्रदेश में पाए जाते हैं। राज ठाकरे की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है और वे शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे की विरासत को हथियाने के लिए उत्तर भारतीयों को अपने निशाने पर लिए हुए हैं। अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है और यदि कोई कुत्ता अपनी गली में आए बाहरी लोगों पर भौंकता है, तो क्या गलत करता है। राज ठाकरे भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं।<br /><p><span class="">रेलमंत्री</span>लालू प्रसाद यादव को मुंबई में छठपूजा करने की चुनौती देकर और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को सपरिवार गरियाकर शिवसेना का यह पुराना सैनिक पहले भी धृष्टता कर चुका है। और अब रेलवे की परीक्षा देने आए बिहारियों की मारपीट के पीछे उनकी वोट बैंक की गंदी राजनीति और दूषित मानसिकता ही निहित है <span class="">।ऐसा करते</span> समय राज ठाकरे और उनके अनुयायी यह भूल जाते हैं कि यदि देश के अन्य हिस्सों में महाराष्ट्र के लोगों को खदेड़ने का सिलसिला शुरु हो गया, तो क्या होगा और इस दौरान होने वाली हिंसा के लिए जवाबदेह कौन होगा? सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र के लोग नौकरीपसंद होते हैं और वे देशभर में फैले हैं। यह तो हुई राज की बात। </p><p><span class="">महाराष्ट्र</span> की घटनाओं के विरोध में बिहार में हिंसक घटनाएं हो रही हैं, सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है। गुस्से में अपना घर फुंकने वाले कम से कम अच्छे इंसान तो नहीं हो सकते।यदि आप कभी नईदिल्ली के रेलवे स्टेशन पर गए हों, तो आपके पता होगा कि बिहार जाने वाली प्रत्येक रेलगाड़ी की जनरल बोगी में बैठने के लिए लोगों की लंबी कतारें लगती हैं और इन कतारों को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों को काफी मशक्कत करना पड़ती है। क्या यह दृश्य बिहारियों के खराब छवि पेश नहीं करते। वैसे बिहारियों पर इससे पहले भी निशाने साधे जाते रहे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने यह कहकर चौंका दिया था कि बिहार व उत्तर प्रदेश के लोगों के कारण प्रदेश की मूलभूत सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं। असम के कुछ संगठनों ने भी बिहारियों को खदेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिर बिहारियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है और इसके लिए जवाबदेह कौन है? , यह चिंतन का विषय है। </p><p>बिहार में इन्फास्ट्रक्चर का अभाव है, उद्योग-धंधे भी बेहतर स्थिति में नहीं है। इस कारण बिहारी युवक रोजगार की तलाश में दीगर प्रदेशों की राह पकड़ते हैं। बड़े-बड़े राजनेता भी इस मूल समस्या का समाधान खोजने की बजाय जोकरगिरी करने और युवाओं को ठाकरे मार्ग के लिए उकसाने में ही व्यस्त हैं। ऐसे हालात में तो बिहारियों के साथ जो आज महाराष्ट्र या असम में हो रहा है, वह किसी और प्रदेश में भी होगा। बेहतर होगा राजनेता मिल-बैठकर प्रदेश के इन्फास्ट्रक्चर को सुधारें और रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराएं। बेरोजगारी से कोई भी प्रदेश या क्षेत्र अछूता नहीं है। ऐसे में रोजगार के अवसर पर पहला अधिकार उस प्रदेश के युवा का ही होना चाहिए। पिछड़े या कमजोर राज्यों के युवाओं के लिए कुछ स्थान आरक्षित किए जा सकते हैं।</p>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-41764807752688689822008-10-15T13:38:00.013+05:302008-10-24T20:50:08.783+05:30राजमाता पर फिल्म के मायने<a href="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPWu2E9w-_I/AAAAAAAAALc/ZJHpwMEYNuA/s1600-h/12345.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5257300384093895666" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="http://4.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPWu2E9w-_I/AAAAAAAAALc/ZJHpwMEYNuA/s320/12345.jpg" border="0" /></a> ग्वालियर के <span class="">सिंधि<a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPWodni8K5I/AAAAAAAAALE/naHEFgtih-8/s1600-h/28sld3.jpg"></a>या</span> राजवंश की आखिरी <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/Vijayaraje_Scindia" target="_blank">राजमाता विजयाराजे सिंधिया</a> ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। राजपथ से लोकपथ का उनका यह सफर <span class="">क<a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPWpr-5AeEI/AAAAAAAAALU/rvQOcjDYYkI/s1600-h/scindia-5.jpg"></a>भी</span> रजिया <span class="">सुल्तान</span> बनी बॉलीवुड की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी अब परदे पर जीवंत करने जा रही हैं। 'एक थी रानी ऐसी भी' नामक फिल्म में हेमा राजमाता <span class="">का<a href="http://3.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPWpr-5AeEI/AAAAAAAAALU/rvQOcjDYYkI/s1600-h/scindia-5.jpg"></a></span> किरदार निभाएंगी, तो उनके पति जीवाजीराव सिंधिया का किरदार विनोद खन्ना निभाएंगे। यह फिल्म गुलबहार सिंह के निर्देशन में बनने वाली है। इस फिल्म का मुहुर्त पिछले दिनों मुंबई में हो चुका है और जल्द ही इस फिल्म की शुटिंग शुरु हो जाएगी। त्याग, सादगी और सेवा की प्रतिमूर्ति अम्मा महाराज के जीवन पर बनने वाली इस फिल्म को लेकर लोगों की उत्सुकता स्वाभाविक है, क्योंकि ग्वालियर की यह <span class="">अंतिम</span> महारानी हमेशा ही सुर्खियों में रही। फिर चाहे बात मध्यप्रदेश की राजनीति की हो, या फिर अपने पुत्र और कांग्रेस के कद्दावर नेता माधवराव सिंधिया से उनके संबंधों की।<br /><strong><span style="font-size:130%;">राजमाता की भूमिका मेरा सौभाग्य-हेमा</span></strong><br /><div><div><div><span class="">हेमा ने कहा-‘मैं बहुत खुश हूं कि राजमाता के इस किरदार को मैं परदे पर जियूंगी। मेरे लिए यह बहुत सम्मान की बात है। वह भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक थी और मैं आज उसी पार्टी की सदस्य हूं। ये मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि मैं इस किरदार को कर रही हूं।’ हेमा ने बताया कि मैंने काफी समय राजमाता के परिवार के साथ बिताया है। उनके सुपुत्र माधवराव सिंधिया मेरे अच्छे मित्रों में से एक थे। फिर भी मुझे लगता है कि इस किरदार के लिए मुझे कड़ी मेहनत की जरूरत पड़ेगी। इससे पहले मैं रजिया सुल्तान और मीरा जैसे चरित्रों को परदे पर जी चुकी हूं और ये दोनों चरित्र मेरे दिल के बहुत करीब हैं। मैं बस इतना चाहती हूं कि मैं अपने इस किरदार के साथ न्याय कर पाऊं और राजमाता की सच्ची तस्वीर परदे पर पेश कर सकूं । उत्साहित ड्रीमगर्ल ने बताया कि वह पिछली बार ग्वालियर महोत्सव में बेटी अयाना के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने गई थी। इस फिल्म को लेकर मैं शीघ्र ही ग्वालियर जाऊंगी और राजमाता से जुड़ी यादों के सहारे अपने अभिनय को जीवंत करने का प्रयास करूंगी। </span></div><div><span class="">भले ही देश में लोकतंत्र हो, पर परंपराओं व ग्वालियर के जयविलास परिसर में जीवित सिंधिया राजवंश के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस फिल्म को लेकर फिलहाल कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है। हालांकि मुंबई में फिल्म के मुहुर्त पर राजमाता की पुत्रियों वसुंधराराजे और यशोधराराजे भंसाली भी उपस्थित रहीं। दर्शकों को यह उम्मीद कम ही करनी चाहिए कि उन्हें विजयाराजे सिंधिया की जिंदगी के कड़वे सच भी इस फिल्म में देखने को मिलेंगे, क्योंकि फिल्म को विजयाराजे ट्रस्ट ही फाइनेंस कर रहा है। </span></div></div></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3642063820217239565.post-38028669251290862192008-10-01T12:13:00.007+05:302008-10-15T17:31:51.995+05:30आलोक जी कर्ज अभी बाकी है..<div><a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SOMlKsyKTHI/AAAAAAAAAIg/0qz8z0_HmoU/s1600-h/at1.jpeg"></a>खरी-खरी कहने के लिए चम्बल की माटी के लाल आलोक तोमर को अपनेराम की राम-राम। दो बार आलोक जी को जानने-समझने का अवसर मुझे मिला। पहला ग्वालियर के बसंत विहार में रश्मि परिहार के निवास पर दोस्तों की महफिल में और फिर दिल्ली में आपके आवास पर। उनके बारे में औरों से <span class="">ब<a href="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPXbJDHW8nI/AAAAAAAAALs/aRGdSiF207Y/s1600-h/att1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5257349088526398066" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 122px; CURSOR: hand; HEIGHT: 153px" height="143" alt="" src="http://2.bp.blogspot.com/_2o4CiepsL2M/SPXbJDHW8nI/AAAAAAAAALs/aRGdSiF207Y/s320/att1.jpg" width="122" border="0" /></a>हुत</span> कुछ सुना था, वह इन दो मुलाकातों में साफ नहीं हो सका लेकिन इस साक्षात्कार ने काफी हद तक स्पष्ट कर दिया कि आलोक तोमर किस शख्सियत का नाम है। ग्वालियर-चम्बल अंचल ने बहुतेरे प्रतिभाशाली पत्रकार दिए हैं, मगर प्रभाष जोशी जैसे कलम के महारथी की छत्रछाया हर किसी को नहीं मिल पाती। सही मायने में आलोक कुमार सिंह तोमर पतझर को आलोक तोमर बनाने का श्रेय प्रभाष जोशी को जाता है और आपने बेबाकी से इस बात को स्वीकार करके इस महान पत्रकार का मान ही बढ़ाया है। यह चंबल की माटी की ही तासीर है, जिसने जोश-जज्बा और उत्साह के साथ आपको अन्याय के सामने नहीं झुकने का साहस दिया। किसी ने ठीक ही कहा है-<strong>जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जीया करते हैं। </strong>निःसंदेह अपनी लेखनी के कारण आप युवा पत्रकारों के प्रेरणास्रोत हैं, इसलिए आवश्यक है कि आप भी प्रभाष जोशी की भांति ग्वालियर-चम्बल अंचल के प्रतिभाशाली पत्रकारों को आगे बढ़ाने में सेतु का काम करेंगे। शायद चम्बल की माटी का यह कर्ज आप पर अभी बाकी है।<br /><div>चम्बल की शान वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर का विस्तृत इंटरव्यू पत्रकार यशवंत सिंह ने लिया है। यह इंटरव्यू आप विस्तार से यहां पढ़ सकते हैं-</div><br /><div><a class="contentpagetitle" href="http://www.bhadas4media.com/index.php/hamara-hero/31-hamara-hero/504-alok-tomar">''इन दिनों गर्दिश में हूं, आसमान का तारा हूं'' (1)</a> </div><br /><div><a href="http://www.bhadas4media.com/index.php/hamara-hero/31-hamara-hero/503-alok-tomar" target="_blank">''टीवी सुरसा है जो सबको निगल रही है'' (2) </a></div><br /><br /><div></div></div>Manoj Pamarhttp://www.blogger.com/profile/17450239214310600575noreply@blogger.com1